2 अक्टूबर से महात्मा गांधी जयंती पर भारत स्वच्छता अभियान प्रारंभ हो रहा
है। भौतिकतावाद में डूबे भोगी भारतीय समाज में कथित सभ्रांत वर्ग के बहुत कम लोग स्वच्छता का मतलब समझते होंगे यह
बात तय हैं। सच तो यह है कि जिन सामान्य वर्ग के लोगों यह वर्ग ग्रामीण, अशिक्षित अथवा गरीब कहकर हिकारत से देखता है
वह इन्हीं की फैलाई गंदगी का शिकार है। बहुत समय से यह चर्चा चलती रही है कि
पर्यटन स्थलों पर अपने मन की भूख शांत करने गये पेट भरने के लिये साथ लेकर गये बंद
सामान के अवशेष वहीं छोड़ कर चले आते हैं जिनमें प्लस्टिक ज्यादा होती है। प्लास्टिक प्रकृति की शत्रु है यह सभी जानते
हैं। हम छोटे बड़े शहरों में भी देखते हैं
जहां सड़कें और उद्यान भी ऐसे मनोंरजन प्रिय लोगों की क्रूर उदासीनता की वजह से
गंदे दिखाई देते हैं। भारत में तीन तरह की गंदगी फैलाने वाले लोग दिखाई देते
हैं। एक तो वह जो गंदगी में रहने के आदी
हैं और अपने आसपास ही सफाई नहंी करते। दूसरे इतने सफाई पसंद तो होते हैं जो अपने
आसपास का कचड़ा दूसरे के घर के पास या सामने सरका कर कर्तव्य निभाते हैं। तीसरे वह
हैं जो सार्वजनिक स्थान पर कचरा करना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं।
यातायात नियमों में अनुसार हेल्मेट पहनकर चलना जरूरी है। हमने देखा है जब
सख्ती होती है तब लोग हेल्मेट मजबूरी में पहनकर जाते हैं। अनेक तो ऐसे हैं जो गाड़ी पर हेल्मेट लटकाकर
चलते हैं यह सोचकर कि कहीं पहरेदार सक्रिय देखे तो पहन लेंगे। अब यहां यह सवाल उठता है कि गाड़ी पर हेल्मेट
पहनकर चलना जरूरी क्यों माना गया है? आदमी की सुरक्षा के लिये बनाये गये हेल्मेट को लोग बोझ मानते हैं। आंकड़े गवाह है कि दुपहिया वाहन को चलाते हुए
जितने चालक सिर की चोट के कारण हताहत होते हैं उतना किसी अन्य अंग पर प्रहार
से नहीं होते।
चालान के भय से लोग हेल्मेट पहनते हैं। भारत के सार्वजनिक स्थानों पर गदंगी
फैलाने वालों पर भी अगर इसी तरह चालान होने लगें तो मान लीजिये कहंी कचरा दिखाई
नहीं देगा। इसके लिये सार्वजनिक स्थानों
पर उपस्थित आम लोगों को ही यह अधिक दिया जाना चाहिये कि वह किसी कचरा फैंकने वाले
का वीडियो या फोटो निकालकर सक्षम अधिकारी के सामने पेश कर दें जो कि इनसे चालान
वसूल सके। हम में से अनेक लोग जानते हैं
कि पहले हर जगह बीड़ी या सिगरेट पीने वाले मिल जाते थे पर जब से दंड का प्रावधान
हुआ यह समस्या कम हो गयी है। महत्वपूर्ण
बात यह कि अब जिन लोगों से इसका धुंआ सहन नहीं होता वह पीने वाले को टोक देते
हैं। अनेक जगह बस और रेल में हमने देखा
कि लोगों के विरोध करने पर धुम्रपान करने
वाले ने अपनी बीड़ी या सिगरेट फैंक दी।
कहने का अभिप्राय यह है कि इस तरह के सफाई अभियान की सफलता के लिये यह भी
जरूरी है कि गंदगी फैलाने वाले पर दंड लगाना ही चाहिये। अनेक लोग प्रार्थना या सुझाव पर ध्यान नहीं
देते पर दंड का भय उन्हें बुरा काम करने नहीं देता।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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