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8/05/2013

धर्म की दुकान लगाओ-हिन्दी हास्य कविता (dharma ki dukan lagao-hindi hasya kavitaen)



उस्ताद ने शागिर्द से कहा
‘‘ एक बात बताओ
कोई मशहूर हस्ती
हमारे दरबार में हाजिरी नहीं लगाती है,
सामने देखो
वह बूढ़ा बाबा
कौनसी कारितस्तानी करता है
ढेर सारी सुंदरियां टेकती उसके सामने मत्था
उसकी सफेद दाढ़ी भी नहीं शर्माती है।
तुम अगर यहां बने रहना चाहते हो तो
कोई तिकड़म लगाओ,
या यह दरबार छोड़कर चले जाओ।
यह सुनकर शागिर्द ने कहा
‘‘आप तो किताबों से पढ़कर
लोगों को उपदेश सुनाते हो,
पुराने भजन गुनागुनाते हो,
कभी क्रिकेट खेली नहीं,
फिल्मी भी देखी नहीं,
शराब से नहीं कोई वास्ता
सट्टेबाजार का पता नहीं रास्ता,
फिर काहे सामने वाले बूढ़े बाबा जैसा
दिखना चाहते हो,
सफेद कागज पर सफेद स्याही से
क्यों लिखना चाहते हो,
कहें अपने दीपक बापू
बदरंग हो भले ही  चरित्र
पर चाल रंगीन होना चाहिये,
उस्ताद को समय समय दिखाने के लिये
शार्गिदों की खुशी पर हंसना
गम में गमगीन होना चाहिये,
औरतों के सामने कभी मीठा
कभी नमकीन होना चाहिये,
उनकी बात का मतलब
आपकी समझ में नहीं आयेगा,
मेरा भी भविष्य यहां चौपट हो जायेगा,
मैं जा रहा हूं आपको छोड़कर
हो सके तो आप भी यह दरबार बंद कर
किसी जगह किसी भी धर्म की दुकान लगाओ।’’
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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