अभी हाल ही में होली का पर्व निकल गया। दरअसल अपने कंप्यूटर पर 11
हजार रुपये खर्च उसका नवीनीकरण कराया। उसमें वीडियो कैमरे की सुविधा जुड़
जाने पर हमारे मन में कुछ नया करने का विचार बस यूं ही आ गया। दरअसल
हमारे मन में अपने दृष्टिकोण से रचनात्मकता का भाव और दूसरों की दृष्टि से
आत्ममुग्धता की ऐसी प्रवृत्ति है कि कुछ नया करने का अवसर आने पर भी हम
अपनी लेखकीय भडास से दूर नहीं जा पाते हैं। यह इस कदर है कि पहले जब कागज
कहीं किसी भी स्थान पर हाथ में आता तो उस पर कविता या लेख लिखने बैठ जाते
थे। अब कंप्यूटर पर बैठते है तो कहीं न कहीं कुछ लिखने लग ही जाते हैं।
जब वीडियो कैमरा लगा तो उसके साथ जुड़कर कुछ नया करने का विचार आया। तब
भी हमारी यही प्रवृत्ति साथ आयी। चूंकि कोई व्यवसायिक अनुभव नहीं है
इसलिये कैमरा चलाकर बैठ जाते हैं और अपनी कविता या चिंत्तन डाल ही देते
हैं। हालांकि यह हमारी रचनात्मकता के विस्तार का रूप स्वयं को भी कतई नहीं
लगता। कुछ पुरानी कवितायें और चिंत्तन डालने में कुछ समय व्यय हुआ।
अपनी रचना का वीडियो देखकर खुशी हुई तो इस बात का पछतावा भी हुआ कि हमने
उस दौरान ब्लॉग पर कुछ नया नहीं लिखा।
फेसबुक पर दो तीन निजी मित्र भी सक्रिय हैं। उन्होंने कभी हमारी रचनाओं पर पंसद का बटन नहीं दबाया पर वीडियो पर यह काम कर हमें उपकृत करने के साथ ही उन्होंने हमारे मस्तिष्क में प्रश्न चिन्ह भी उपस्थित कर ही दिया। वह हमारा लिखा कभी नहीं पढ़ते और न यह वीडियो पूरा का पूरा उन्होंने सुना-यह उनसे बातचीत करने पर पता चला। उन्होंने हमारे चेहरे को देखकर यह कार्य किया जिससे वह नियमित रूप से देखा ही करते हैं। उनके इस प्रयास से लगा कि हमारे अपने लोगों के लिये शब्दों से अधिक चेहरा महत्वपूर्ण है। इंटरनेट पर हमारी पहचान भी अपने शब्दों से ही बनी है और वीडियो पर वैसी सफलता संदिग्ध दिखती है। जैसे जैसे हमारे मुख से शब्द निकलते हैं लोगों के कान से निकलकर बाहर हो जाते हैं। शब्द अपनी जगह स्थिर रहते है। उन्हें कभी भी पढ़ा जा सकता है। जबकि वीडियो में सुनने और गुनने का प्रयास करना पड़ता हैं
हां, यह विचार तो आया है कि कुछ हास्य कवितायें लिखकर यहां आजमायेंगे। एक अनुभव तो हो गया है कि लिखना और बोलना अलग अलग विधायें हैं। हम उस ढंग से नहीं सुना पाते जिस ढंग से पेशेवर हास्य कवि या गद्यकार सुनाते हैं। हमारे चेहरे के हाव भाव स्वयं को ही रूखे लगते है। वाणी में उतार चढ़ाव नहीं आ पाता। ऐसा लगता है कि अपनी वाणी से शब्द फैंक रहे हैं। प्रयोग के बाद हमने अपना चिंत्तन सुना। लगा नहीं कि कोई बीस मिनट का धैर्य धारण कर उसे सुन पायेगा। बोलते समय अनेक वाक्य बिखरे हुए थे। ऐसे में विचार आया कि वाणी को पेशेवर बनाने के प्रयास करने की बजाय सहज भाव से बातचीत करते हुए अपनी बात कहें। अपने स्वाभाविक ढंग से बात करें। एक बात निश्चित है कि अपने वीडियो जारी करने से हम बाज नहीं आयेंगे। अभी तो बैठने का यही सैट चलेगा। फिर अगर विचार बना तो बाहर से कहीं रिकार्ड कर वीडियो डालेंगे। अभी रिकार्डिंग की कोई पेशवर व्यवस्था नहीं है इसलिये जैसा आयेगा वैसे ही चलेंगें।
इस बात की पूरी संभावना है कि अभ्यास करते करते ऐसी स्थिति आ ही जायेगी कि हमारा पूरा का पूरा विडियो लोग सुनना चाहेंगे। वैसे हम अपने हाथ ही लिखकर ही वीडियो रिकार्डिंग के समय पढ़ें तो रोचक रहेगा। सच बात तो यह है कि हम तो यह भी मानते हैं कि कंप्यूटर पर सीधे लिखने की बजाय अगर पहले किसी कागज पर लिखने के बाद यहां टाईप करें तो शायद बेहतर रचना बनती है। जब कोई भौतिक उपलब्धि न हो तो इतनी मेहनत होती नहीं है और न ही समय मिलता है। अगर लिखने का अंधा शौक न होता तो शायद इतना लिख नहीं पाते। बहरहाल लिख रहे हैं पर जैसा लिखते हैं वैसा बोलकर वीडियो पर जारी करेंगे तो निश्चित रूप से लोग सुनेंगे इसमें संदेह नहीं है। अभी जो वीडियो जारी हुए हैं उनमें वैसा प्रभाव नहीं है जैसा अपेक्षित है। इसका कारण यह है कि हमने अभी इन वीडियो में वैसे विषय शामिल नहीं कर पाये जिसके बेहतर होने की अपेक्षा हम स्वयं भी करते हैं। विचार तो यह है कि वीडियो पर हास्य कवितायें और हास्य व्यंग्य जारी करें तो शायद अधिक सफलता मिले। बहरहाल वीडियो जारी करना हमारे लिये एक रोचक अनुभव है।
फेसबुक पर दो तीन निजी मित्र भी सक्रिय हैं। उन्होंने कभी हमारी रचनाओं पर पंसद का बटन नहीं दबाया पर वीडियो पर यह काम कर हमें उपकृत करने के साथ ही उन्होंने हमारे मस्तिष्क में प्रश्न चिन्ह भी उपस्थित कर ही दिया। वह हमारा लिखा कभी नहीं पढ़ते और न यह वीडियो पूरा का पूरा उन्होंने सुना-यह उनसे बातचीत करने पर पता चला। उन्होंने हमारे चेहरे को देखकर यह कार्य किया जिससे वह नियमित रूप से देखा ही करते हैं। उनके इस प्रयास से लगा कि हमारे अपने लोगों के लिये शब्दों से अधिक चेहरा महत्वपूर्ण है। इंटरनेट पर हमारी पहचान भी अपने शब्दों से ही बनी है और वीडियो पर वैसी सफलता संदिग्ध दिखती है। जैसे जैसे हमारे मुख से शब्द निकलते हैं लोगों के कान से निकलकर बाहर हो जाते हैं। शब्द अपनी जगह स्थिर रहते है। उन्हें कभी भी पढ़ा जा सकता है। जबकि वीडियो में सुनने और गुनने का प्रयास करना पड़ता हैं
हां, यह विचार तो आया है कि कुछ हास्य कवितायें लिखकर यहां आजमायेंगे। एक अनुभव तो हो गया है कि लिखना और बोलना अलग अलग विधायें हैं। हम उस ढंग से नहीं सुना पाते जिस ढंग से पेशेवर हास्य कवि या गद्यकार सुनाते हैं। हमारे चेहरे के हाव भाव स्वयं को ही रूखे लगते है। वाणी में उतार चढ़ाव नहीं आ पाता। ऐसा लगता है कि अपनी वाणी से शब्द फैंक रहे हैं। प्रयोग के बाद हमने अपना चिंत्तन सुना। लगा नहीं कि कोई बीस मिनट का धैर्य धारण कर उसे सुन पायेगा। बोलते समय अनेक वाक्य बिखरे हुए थे। ऐसे में विचार आया कि वाणी को पेशेवर बनाने के प्रयास करने की बजाय सहज भाव से बातचीत करते हुए अपनी बात कहें। अपने स्वाभाविक ढंग से बात करें। एक बात निश्चित है कि अपने वीडियो जारी करने से हम बाज नहीं आयेंगे। अभी तो बैठने का यही सैट चलेगा। फिर अगर विचार बना तो बाहर से कहीं रिकार्ड कर वीडियो डालेंगे। अभी रिकार्डिंग की कोई पेशवर व्यवस्था नहीं है इसलिये जैसा आयेगा वैसे ही चलेंगें।
इस बात की पूरी संभावना है कि अभ्यास करते करते ऐसी स्थिति आ ही जायेगी कि हमारा पूरा का पूरा विडियो लोग सुनना चाहेंगे। वैसे हम अपने हाथ ही लिखकर ही वीडियो रिकार्डिंग के समय पढ़ें तो रोचक रहेगा। सच बात तो यह है कि हम तो यह भी मानते हैं कि कंप्यूटर पर सीधे लिखने की बजाय अगर पहले किसी कागज पर लिखने के बाद यहां टाईप करें तो शायद बेहतर रचना बनती है। जब कोई भौतिक उपलब्धि न हो तो इतनी मेहनत होती नहीं है और न ही समय मिलता है। अगर लिखने का अंधा शौक न होता तो शायद इतना लिख नहीं पाते। बहरहाल लिख रहे हैं पर जैसा लिखते हैं वैसा बोलकर वीडियो पर जारी करेंगे तो निश्चित रूप से लोग सुनेंगे इसमें संदेह नहीं है। अभी जो वीडियो जारी हुए हैं उनमें वैसा प्रभाव नहीं है जैसा अपेक्षित है। इसका कारण यह है कि हमने अभी इन वीडियो में वैसे विषय शामिल नहीं कर पाये जिसके बेहतर होने की अपेक्षा हम स्वयं भी करते हैं। विचार तो यह है कि वीडियो पर हास्य कवितायें और हास्य व्यंग्य जारी करें तो शायद अधिक सफलता मिले। बहरहाल वीडियो जारी करना हमारे लिये एक रोचक अनुभव है।
इस लेख का वीडियो लिंक यह है
बहरहाल इस रविवार पर बस इतना ही।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीपबहरहाल इस रविवार पर बस इतना ही।
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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