सोचते हैं अपने साथ हुए हादसे
ज़माने से छिपायें
वरना लोग हंसते हैं,
मगर क्या करें
घाव करने वाले सरेराह कर जाते है
लोगों के मखौल के जाल में
हम यूं ही फंसते हैं।
कहें दीपक बापू
कोशिश करते हैं
अपना दर्द किसी को न बतायें,
चोट से पहले ही रिस जाता है
दोबारा खून क्यों जलायें,
मगर खंजर को दिल नहीं होता
सहने की भी हद है
घाव गहरा हो
आंखों में आंसु टपक ही आते हैं
लोग दिखाते हैं हमदर्दी
हमें लगता है वह मन ही मन हंसते हैं।
ज़माने से छिपायें
वरना लोग हंसते हैं,
मगर क्या करें
घाव करने वाले सरेराह कर जाते है
लोगों के मखौल के जाल में
हम यूं ही फंसते हैं।
कहें दीपक बापू
कोशिश करते हैं
अपना दर्द किसी को न बतायें,
चोट से पहले ही रिस जाता है
दोबारा खून क्यों जलायें,
मगर खंजर को दिल नहीं होता
सहने की भी हद है
घाव गहरा हो
आंखों में आंसु टपक ही आते हैं
लोग दिखाते हैं हमदर्दी
हमें लगता है वह मन ही मन हंसते हैं।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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