आज पूरे देश में गुरुनानक जयंती मनाई जा रही है। नवीन पीढ़ी के लोग यह समझते हैं कि यह केवल सिख धर्म के लिये पवित्र दिन है। इसका कारण यह है कि आधुनिक शिक्षा में अंग्रेजी पद्धति से नौकरी प्राप्त करने के लिये दी जा रही शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बच्चों को अध्यात्मिक ग्रंथों तथा धर्म की रूपरेखा से दूर रखा जा रहा है। आमतौर से गुरुनानक जयंती का पर्व मनाया भी गुरुद्वारों में जाता है और इससे नयी पीढ़ी में सिख धर्म को हिन्दू धर्म से प्रथक कोई अन्य धर्म होने का विचार पुष्ट होता है। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि गुरुनानक जी के तत्कालीन हालतों सभी समाजों में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों तथा पाखंड को दूर करने के लिये ही अपना पूरा जीवन अर्पित किया। इतना ही नहीं उनकी वाणी से निकले संदेशों में कहीं न कहीं उन प्राचीन ग्रंथों के आधार तत्व मौजूद हैं जिनको आज केवल हिन्दू धर्म की संपत्ति माना जाता है। कुछ अध्यात्मिक ज्ञानी तो श्रीमद्भागवत गीता के समक्ष गुरुग्रंथ साहिब को रखते हैं इसकी जानकारी वर्तमान पीढ़ी के लोगों को शायद ही हो। निष्काम कर्म, निष्प्रयोजन दया और हृदय से परमात्मा की भक्ति का जो संदेश गुरुनानक जी ने नवीन संदर्भों में दिया वह श्रीमद्भागवत गीता के आधार से मेल खाता है।
उनका दैहिक जीवन मध्यकाल में समय का है जब भारत में धार्मिक, सामाजिक तथा संस्कृति संघर्षों की शुरुआत हो गयी थी। पहले से ही जातीय समुदायों में बंटा समाज धार्मिक विभाजनों की तरफ बढ़ रहा था। यही कारण है कि भगवान गुरुनानक देव जी ने उसमें अधंविश्वासों और रूढ़ियों के विरुद्ध अभियान छेड़ा। उनका यह प्रयास सामयिक था और देखा जाये तो उनकी कोशिश रंग लाई। आज हम अपने जिस प्राचीन अध्यात्मिक ज्ञान को जीवंत अवस्था में देख रहे हैं यह उनकी कर्म कृपा का ही परिणाम है। इतना ही नहीं अध्यात्मिक ज्ञानी सिद्ध और साधक गुरुनानक जी के नाम को हिन्दू और सिख धर्म में नहीं बांटते और गुरुद्वारों में सभी समुदायों के लोग इस प्रकाश पर्व पर अपनी श्रद्धा व्यक्त करने जाते हैं। श्रीगुरुनानक जी निष्काम और निरंकार भक्ति के प्रवर्तक थे और प्राचीन भारतीय अध्यात्मिक दर्शन इस प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ मानता है।
सिख पंथ में गुरुनानक देव के बाद भी नौ गुरु हुए। इन सभी गुरुओं ने मुख्य रूप से तत्कालीन धार्मिक कुरीतियों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिये काम जारी रखा। दसवें तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने देह त्याग के पूर्व ही यह स्पष्ट आदेश दिया कि ‘‘अब पंथ का प्रदर्शक गुरु ग्रंथ साहिब होगा।
अंगिआ भई अकाल की, तभी चलाइओ पंथ।
सब सिखन को हुकम है, गुरु मानिओ ग्रंथ।।
गुरु ग्रंथ जी मानिओ, प्रगट गुरां की देह।
जो प्रभि कउ मिलबो चहै, खोज शबद में लेह।।
सब सिखन को हुकम है, गुरु मानिओ ग्रंथ।।
गुरु ग्रंथ जी मानिओ, प्रगट गुरां की देह।
जो प्रभि कउ मिलबो चहै, खोज शबद में लेह।।
हमारे भारतीय समाजों में गुरु शिष्य की परंपरा का हमेशा दुरुपयोग होते देखा गया है। कहा जाता है कि गुरु से शिक्षा प्राप्त कर फिर शिष्य को उसका सानिध्य त्यागना चाहिए। मगर ऐसा होते देखा नहीं जाता। एक बार किसी ने कोई गुरु बना लिया तो वह बस पूरा शिष्य समुदाय उसके आश्रम के चक्कर काटता रहता है। अनेक गुरु तो स्वयं के जन्म दिन के साथ ही गुरुओं के जन्म और मरण दिवस पर अपने शिष्यों से गुरुदक्षिणा लेते रहते हैं। सिख गुरुओं ने इसका हमेशा ध्यान रखा। यही कारण है कि अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह ने इस दैहिक गुरु परंपरा को खत्म करते हुए गुरुग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मानने का उपदेश दिया। गुरुनानक जी एकदम अध्यात्मिक तत्वज्ञानी थे। उन्होंने अपने बाद अपने शिष्यों और समाज की देखभाल के लिये गुरु अंगददेव को उत्तराधिकारी बनाया। गुरुनानक देव जी के दो पुत्र थे पर उन्होंने निष्पक्ष तथा निष्काम भाव में रहते हुए पंथ के भविष्य के लिये जिस तरह अपने प्रिय शिष्य लहणाजी को गुरु अंगददेव का नाम देकर दायित्व सौंपा उससे उन्होंने रक्त संबंधों के आधार पर स्वाभाविक योग्यता के भ्रमित सिद्धांत को खंडित ही किया। वंशवाद के इस सिद्धांत को तिलांजलि देकर उन्होंने साबित किया कि जो व्यक्ति समाज के हित में सोचता है उसे अपने वैयक्तिक पूर्वाग्रह छोड़ देना चाहिए।
गुरुनानकजी उन लोगों के लिये एक आदर्श महापुरुष है जो लोग अध्यात्मिक ज्ञान में रुचि रखते हैं। उनके बाद हुए सभी गुरु भी समाज का मार्गदर्शन जिस तरह करते रहे उससे यह साबित होता है कि गुरुनानक देव जी एक महान आत्मा थे। इसलिये उनके लगाये पेड़ पर वैसे ही पवित्र फल उगते रहे। हालांकि अब कुछ लोग अपने स्वार्थों की वजह से सिख और हिन्दू धर्म को प्रथक प्रथम बताते हैं पर सच यह है कि गुरुग्रंथ साहिब में प्राचीन भारतीय अध्यात्म दर्शन को नवीन रूप प्रदान करने वाली सामग्री संग्रहित। नये विषयों में नये संदर्भों में उस अध्यात्मिक ज्ञान की व्याख्या की गयी है। अगर कोई प्राचीन भारतीय अध्यात्म ग्रंथ न पढ़कर केवल गुरुग्रंथ साहिब का श्रद्धा से अध्ययन करने तो उसे वह तत्वज्ञान प्राप्त कर इस लोक में सहज जीवन व्यतीत कर सकता है।
गुरुनानक देव जन्म दिन पर हम अपने सभी पाठकों और ब्लाग लेखक को बधाई देते हैं। हमें विश्वास है कि अगर सभी लोग भारत के महान अध्यात्मिक पुरुष गुरुनानक जी का जीवन चरित्र उनके लिये प्रेरणादायी होगा।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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