महफिलों में भी जब तन्हाई सताने लगे
समझ लो तब
उम्र अपनी ताकत बयान करने लगी है,
बाहर की खूबसूरती देखते हुए
आंखें थक गयी हैं,
दिल में कहीं रूह के लिये तड़प जगी है।
कहें दीपक बापू
जिन्होंने पाई है कुदरत से
अपनी खूबसूरत नीयत
सेहत उनकी ही रहती तंदुरस्त
नहीं ढूंढते वह उधार के पल
जिंदगी उनकी ही सगी है।
---------
रौशनी के चिराग तलाशने से नहीं मिलते
दौलत के पेड़ पर तमीज के फल नहीं खिलते हैं,
ए दीवानों
अपने जिस्म में तैर रहा है अमृत
अहसास करो तो जानो
कहें दीपक बापू
अपने पांव से करो चहलकदमी
मुर्दा क्यों बन गये हो
जो उधार के पहिये लेकर
रास्ते में मरीजों की तरह हर समय हिलते हैं।
----------
जिस्म में नहीं अहसास करने की ताकत
खुशनुमा पल ढूंढते हैं
कहें दीपक बापू
मर गये हैं जज़्बात जिनके
वही दूसरों में दरियादिली की भीख के लिये
इस दर से उस दर की तरफ घूमते हैं।
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समझ लो तब
उम्र अपनी ताकत बयान करने लगी है,
बाहर की खूबसूरती देखते हुए
आंखें थक गयी हैं,
दिल में कहीं रूह के लिये तड़प जगी है।
कहें दीपक बापू
जिन्होंने पाई है कुदरत से
अपनी खूबसूरत नीयत
सेहत उनकी ही रहती तंदुरस्त
नहीं ढूंढते वह उधार के पल
जिंदगी उनकी ही सगी है।
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रौशनी के चिराग तलाशने से नहीं मिलते
दौलत के पेड़ पर तमीज के फल नहीं खिलते हैं,
ए दीवानों
अपने जिस्म में तैर रहा है अमृत
अहसास करो तो जानो
कहें दीपक बापू
अपने पांव से करो चहलकदमी
मुर्दा क्यों बन गये हो
जो उधार के पहिये लेकर
रास्ते में मरीजों की तरह हर समय हिलते हैं।
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जिस्म में नहीं अहसास करने की ताकत
खुशनुमा पल ढूंढते हैं
कहें दीपक बापू
मर गये हैं जज़्बात जिनके
वही दूसरों में दरियादिली की भीख के लिये
इस दर से उस दर की तरफ घूमते हैं।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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