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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/13/2011

जिस्म में तैर रहा है अमृत-हिन्दी शायरियां (jisma mein tair raha hai amrit-hindi shayariyan

महफिलों में भी जब तन्हाई सताने लगे
समझ लो तब
उम्र अपनी ताकत बयान करने लगी है,
बाहर की खूबसूरती देखते हुए
आंखें थक गयी हैं,
दिल में कहीं रूह के लिये तड़प जगी है।
कहें दीपक बापू
जिन्होंने पाई है कुदरत से
अपनी खूबसूरत नीयत
सेहत उनकी ही रहती तंदुरस्त
नहीं ढूंढते वह उधार के पल
जिंदगी उनकी ही सगी है।
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रौशनी के चिराग तलाशने से नहीं मिलते
दौलत के पेड़ पर तमीज के फल नहीं खिलते हैं,
ए दीवानों
अपने जिस्म में तैर रहा है अमृत
अहसास करो तो जानो
कहें दीपक बापू
अपने पांव से करो चहलकदमी
मुर्दा क्यों बन गये हो
जो उधार के पहिये लेकर
रास्ते में मरीजों की तरह हर समय हिलते हैं।
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जिस्म में नहीं अहसास करने की ताकत
खुशनुमा पल ढूंढते हैं
कहें दीपक बापू
मर गये हैं जज़्बात जिनके
वही दूसरों में दरियादिली की भीख के लिये
इस दर से उस दर की तरफ घूमते हैं।
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वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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