पेट्रोल की कीमतें बढ़ी तो पूरे देश में आक्रोश का माहौल दिखा। पेट्रोल के मूल्यों को लेकर तमाम बहसें हुईं। ऐसे में कुछ बहसकर्ताओं ने कहा कि ‘देश की अर्थव्यवस्था जनता की स्थिति और लोकप्रियता को देखकर नहीं बनाई जाती बल्कि अर्थशास्त्र के आधार पर अर्थशास्त्रियों के राय के अनुसार तय की जाती है।’’
हम यहां पेट्रोल के अर्थशास्त्र पर बहस नहीं कर रहे हैं क्योंकि यह तय करना अब कठिन है कि इस देश में कौन अर्थशास्त्री है और कौन अनर्थशास्त्री। स्पष्टतः हम वाणिज्य विषय के विद्यार्थी रहें और अर्थशास्त्र हमारा एक अप्रिय विषय रहा है इसलिये अपने को अर्थशास्त्री कहते हुए तो संकोच होता है अलबत्ता व्यंग्यकार होने के नाते भाई लोग अनर्थशास्त्री जरूर कहते हैं। स्नातक होने के बाद हमें अर्थशास्त्री बनने का ख्याल आया तो पुनः उसे पढ़ा। उसे पढ़ा तो अर्थशास्त्री तो बन गये पर देश के हालातों को देखकर लगा कि हम स्वयं ही अनर्थशास्त्री हैं। प्रचार माध्यमों के अनुसार पाकिस्तान और बंग्लादेश में भारत की अपेक्षा पेट्रोल बहुत सस्ता है। जिस तरह हमारे देश में पेट्रोल के दाम बढ़ते रहे हैं उससे तो लगता है कि पाकिस्तान और बंग्लादेश की जनता भाग्यशाली है कि वहां कोई अर्थशास्त्री नहीं है। बहरहाल हम सब खामोशी से देखते रहे।
अब पेट्रोल के दाम कम हो गये तो कुछ लोगों के पेट में मरोड़ उठते दिखा। कथित विद्वानों ने कहा कि ‘देश में लोकप्रियता पाने के लिये जनप्रतिनिधियों के दबाव में इस तरह दाम कम किये गये पर अर्थशास्त्रियों की नज़र से गलत है। पहले पेट्रोल के भाव अर्थशास्त्रियों की सलाह पर किये गये और अब जनप्रतिनिधियों के कहने पर कम किये गये।’
इस तर्क पर हमारे पास हंसने के अलावा कोई चारा नहीं था। हमने एक मित्र से कहा-‘‘यार देश में ऐसे कौनसे अर्थशास्त्री हैं जिनको पेट्रोल के दाम कम होने पर एतराज है?‘‘
वह बोलो-‘मुझे क्या मालुम? मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं अर्थशास्त्र का नहीं। न तुम्हारी तरह अनर्थ वाली बातें लिखता हूं। मुझे अफसोस है कि मेरी तुम्हारे से दोस्ती हुई पर इतना तय है कि तुम अर्थशास्त्र के जानकार न ही सही पर अनर्थशास्त्र तुम्हें खूब ज्ञान है। तुम कोई व्यंग्य लिखने वाले हो और एक चाय की कीमत पर मैं तुम्हारे साथ कोई सहयोग करने को तैयार नहीं हूं।’’
हमने कहा-‘‘हमें तुमने अनर्थशास्त्री कहा इसके लिये शुक्रिया! याद रखना हम उन अर्थशास़्ित्रयों से तो ठीक हैं जिनको पेट्रोल के दाम कम होने का अफसोस है।’’
भगवान ही जानता है कि इस देश में ऐसे कौनसे अर्थशास्त्री हैं जिनको तेल के दाम कम होने पर अफसोस हुआ। इन अक्लमंदों से कोई पूछे तो यह सलाहें देते हैं कि विदेशों से ऐसे समझौते करने चाहिए जिससे देश लोग दोहरे कराधान का शिकार न हों। मतलब यह कि अगर किसी ने विदेश में कर चुकाया हो तो वह देश में राहत पाये। सीधी मतलब यह है कि पूंजीपतियों को लाभ हो ताकि वह देश को लूट सकें। यहां पेट्रोल पर दोहरा नहीं तिहड़ा चोहड़ा टैक्स लगता है। केंद्र का अलग, राज्य का अलग तथा क्षेत्रीय अलग। तब क्या इन अर्थशास्त्रियों को दिमाग का क्या घास चरने चलाज जाता है? अमीर के साम्राज्य में देश की रक्षा तथा गरीब के शोषण में विकास देखने वाले इन अर्थशास्त्रियों को हम जैसे अनर्थशास्त्री से सामना नही हुआ है। इसलिये लगे रहें, रोते रहें, हंसते रहें! प्रचार माध्यमों में बहस कर अपना काम चलायें। यही ठीक है। अपने विद्वान होने का भ्रम न पालें तो ठीक है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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