अन्ना हजारे के आंदोलन के चलते जनलोकपाल कानून का प्रारूप बनाने वाली समिति मे न्यायविद् पिता पुत्र के शामिल होने पर आपत्ति कर बाबा रामदेव ने गलती की या नहीं कहना कठिन है। इतना तय है कि वह श्रीमद्भागवत गीता का ‘गुण ही गुणों में बरतते हैं’ और ‘इद्रियां ही इंद्रियों में बरतती हैं’ के सिद्धांतों को नहीं समझते। वह दैहिक रूप से बीमार समाज के विकारों को जानते हैं पर मानसिक विकृतियों को नहंी जानते। दरअसल उनका योग लोगों को स्वस्थ रखने तक ही सीमित हो जाता है। उनका मानना है कि स्वस्थ शरीर में ही ही स्वस्थ मन रहता है इसलिये देश के लोग स्वस्थ रहेगा। यह ठीक है पर मन की महिमा भी होती है। भौतिकता में उसे लिप्त रहना भाता है जिससे अंततः विकार पैदा होते हैं। इस मन पर निंयत्रण करने की विधा भी योग में है पर उसके लिये जरूरी है कि योग साधक योग के आठ अंगो को समझे। उसके बाद श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करे। बाबा रामदेव अनेक बाद श्रीगीता के संदेश सुनाते हैं वह अभी ‘गीता सिद्ध’ नहीं बन पाये। यही कारण है कि वह अनेक घटनाओं पर तत्कालिक रूप से अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। कहीं न कहीं प्रचार की भूख में उनके मन के लिप्त होने का प्रमाण है। है। उनको यह मालुम नहीं कि यह देश नारों पर चलता है घोषणाओं पर खुश हो जाता है लोग सतही विषयों बहसों में मनोरंजन करने की आदत को जागरुकता का प्रमाण मान लेते हैं। सच तो यह है कि बाबा रामदेव की सोच भी समाज से आगे नहीं बढ़ पायी है। अन्ना हजारे के आंदोलन से अस्तित्व में आई लोकजनपाल समिति में जनप्रतिनिधियों के नाम पर ‘वंशवाद’ की बात कर बाबा रामदेव ने अपने वैचारिक क्षमताओं के कम होने कप प्रमाण दिया है। इस समिति का पद कोई सुविधा वाला नहीं है न ही इस पर बैठने वाले को कोई नायकत्व की प्राप्ति होने वाली है। फिर सवाल यह है कि इसमें शामिल होने का मतलब क्या कोई सम्मान मिलना है या उसमें जिम्मेदारी निभाने वाली भी कोई बात है। बाबा रामदेव ने पूर्व महिला पुलिस अधिकारी के शामिल न होने पर निराशा जताई पर वह जरा यह भी बता देते कि क्या वह यह मानते हैं कि वह अपनी जिम्मेदार जनता की इच्छा के अनुरूप निभाती क्योंकि उनमें ऐसा सामर्थ्य भी है।
ऐसा लगता है कि बाबा रामदेव प्रचार माध्यमों में रचित ‘रामदेव विरुद्ध हज़ारे’ मैच के खेल में फंस गये। प्रचार माध्यम तो यह चाहते होंगे कि यह मैच लंबा चले। दरअसल बाबा रामदेव और श्री अन्ना हज़ारे एक ही स्वयंसेवी बौद्धिक समूह के संचालित आंदोलन के नायक बन गये जो बहुत समय से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिये जूझ रहा है। पहले वह स्वामी रामदेव को अपने मंच पर ले आया तो अब स्वप्रेरणा से दिल्ली में आये अन्ना हज़ारे के आमरण अनशन शिविर में अपना मंच लेकर ही पहुंच गया। बाबा रामदेव का अभियान एकदम आक्रामक नहीं हो पाया पर अन्ना जी का आमरण अनशन तीव्र सक्रियता वाला साबित हुआ जिससे स्वयंसेवी बौद्धिक समूह को स्वाभाविक रूप से जननेतृत्व करने का अवसर मिला। उसमें कानूनविद भी है और जब कोई बात कानून की होनी है तो उनको बढ़त मिली है इसमें बुरा नहीं है। फिर अगर कानून बनाने वाली समिति में पिता पुत्र हों तो भी उसमें बिना जाने बूझे वंशवाद का दोष देखना अनुचित है। खासतौर से तब जब काम अभी शुरु ही नहीं हुआ है। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के व्यक्तित्व में कोई समानता नहीं है। ंअन्ना जी सच्चे समाज सेवक का प्रतीक हैं जिनका अभी तक कार्यक्षेत्र महाराष्ट्र तक सीमित था। इसके विपरीत बाबा रामदेव का व्यक्त्तिव और कृतित्व विश्व व्यापी है। दोनों एक ही लक्ष्य के लिये एक साथ आये जरूर हैं पर दोनों की भूमिका इतिहास अलग अलग रूप से दर्ज करेगा वह भी तब जब आंदोलन अपनी एतिहासिक भूमिका साबित कर सका।
जब श्री अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के विरुद्ध आमरण अनशन पर थे तब वह प्रचार माध्यमों में छा गये जिससे उनकी जनता में नायक की छवि बनी। जबकि ऐसी छवि अभी तक अकेले स्वामी रामदेव की थी। ऐसे में उनको लगा कि वह पिछडे रहे हैं। वह अन्ना हजारे के शिविर में भी अंतिम दिन आये। उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि वह इस आंदोलन में अन्ना हजारे के साथ हैं। सच तो यह है कि उनका बयान इस तरह था कि जैसे अन्ना हजारे उनके ही अभियान को आगे बढ़ाने आये हैं। यह इसी कारण लगा कि वहां वही बौद्धिक समूह उपस्थित था जो कि पहले बाबा रामदेव के साथ रहा है।
वैसे अन्ना हजारे बाबा रामदेव से योग न सीखें पर राजनीतिक दृढ़ता के बारे में उनको हजारे जी का अनुकरण करना चाहिए। एक भी बयान चालाकी से नहीं दिया और अपनी निच्छलता से ही योग होने का प्रमाण प्रस्तुत किया। अब तो ऐसा लगने लगा है कि बाबा रामदेव योग से इतर अलग अपनी गतिविधियों में अपनी श्रेष्ठता के प्रचार में फंसने लगे हैं।
बाबा रामदेव को यह बात समझ लेना चाहिए कि अभी भारतीय समाज नारों और घोषणाओं में ही सिमटने का आदी है। ऐसे में एक वाक्य और शब्द का भी कोई दुरुपयोग कर सकता है। अतः जहां तक हो सके अधिक बयानबाजी से बचना चाहिए। आप कहीं पचास वाक्य बोलें पर यहां आदमी एक पंक्ति या शब्द ढूंढेगा जिसको लेकर वह आप भड़क सके।
मान लीजिये आपने यह कहा कि ‘अपने घर में बेकार पड़े पत्थर मै। किसी दिन बाहर सड़क पर फैंक दूंगा।’
ऐसे में आपको बदनाम करने के लिये कोई भी आदमी बाहर कहता फिरेगा कि वह कह रहे हैं कि‘ मैं पत्थर किसी सड़क पर फैंक दूंगा। अब आप बताओ किसी को लग गया तो, कोई घायल हो गया तो, चलो उसके घर पर प्रदर्शन करते हैं।’
यहां अनेक बुद्धिजीवियों और प्रचारकों ने इस झूठे प्रचार में महारत हासिल कर रखा है। दरअसल भ्रष्टाचार देश के समाज में घुस गया है। यही कारण है कि यथास्थिति सुविधाभोगी जीव इस आंदोलन से आतंकित है। ऐसे में वह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनकारियों के नेतृत्व के शब्दों और वाक्यों का अपनी सुविधा से इस्तेमाल कर सकते हैं। श्री अन्ना हजारे के समर्थकों को अभी यह अंदाजा नहीं है कि उनका अभी कैसे कैसे वीरों से सामना होना है जो यथास्थितिवादियों के समर्थक या किराये पर लाये जायेंगे। एक बात तय रही है कि यह घटना सामान्य लगती है पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोर्चा लेने वाले अग्रिम पंक्ति के सभी बड़े लोगों को यह बात समझना चाहिए कि यह उन लोगों की तरफ से भी प्रतिरोध होगा जो यथास्थितिवादी हैं।
बाबा रामदेव ने गलती की तो न्यायविद् पिता पुत्र भी पीछे नहीं रहे। कानून का प्रारूप बनाना योग सिखाने से अधिक कठिन है। विशुरु रूप से मजाकिया वाक्य है भले ही गंभीरता से कहा गया है। बात वहीं आकर पहुंचती है कि योग पर वही लोग अधिक बोलते हैं जिनको इसका ज्ञान नहीं है। कानून बनाना कठिन काम हो सकता है पर अपने देश में इतने सारे कानून बनते रहे हैं। कुछ हटते भी रहे हैं। मतलब कानून बनाने वाले बहुत हैं पर योग सिखाने वाले बहुत कम हैं। बाबा रामदेव जैसे तो विरले ही हैं। भ्रंष्टाचार विरोधी आंदोलन का योग से कोई वास्ता नहीं है। अगर आप बाबा रामदेव पर योग का नाम लेकर प्रहार करेंगे तो तय मानिए इस देश में योग साधकों का एक बहुत बड़ा वर्ग आप पर हंसेगा और बनी बनाई छवि मिट्टी में मिलते देर नहीं लगेगी। अभी भारतीय योग साधना का प्रचार अधिक हो रहा है पर इसका आशय यह कतई नहीं है कि टीवी पर योगासन और प्राणायाम देख सुनकर उसके बारे में पारंगत होने का दावा कर लें। अगर कोई सच्चा योगी है तो उसके लिये कानून बनाना किसी न्यायविद् से भी ज्यादा आसान है क्योंकि आष्टांग योग के साधक वैचारिक योग में भी बहुत माहिर हो जाते हैं। न्यायविद् तात्कालिक हालत देखकर कानून बनाता है और योगी भविष्य का भी विचार कर लेता है। इसका प्रमाण यह है कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने आज से हजारों वर्ष पूर्व श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था वह आज भी प्रासंगिक लगता है।
बहरहाल बाबा रामदेव ने श्री अन्ना हजारे का सम्मान करते हुए अनेक बातें कही हैं तो श्री अन्ना हजारे ने भी निच्छलता से स्वामी रामदेव के बारे के प्रति अपना विश्वास दोहराया है। यह अच्छी बात है। हम जैसा आम आदमी और फोकटिया लेखक दोनों महानुभावों के कृत्यों पर अपनी दृष्टि जिज्ञासावश रखता है तब यह जानने की उत्सुकता बढ़ती जाती है कि आखिर समाज में बदलाव की चल रही मुहिम कैसे आगे बढ़ रही है।
चलते चलते
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चलते चलते एक बात! पता नहीं यह बात इस विषय से संबंधित है कि नहीं! एक योगसाधक के रूप में हम यह दावा कर सकते हैं कि योग साधना मजाक का विषय नहीं है। टीवी पर चल रहे एक कामेडी कार्यक्रम में इस पर फब्तियां कसी गयीं। यह देखकर यह विचार आया। हमें भी हंसी आई पर कामेडियनों पर नहीं बल्कि उन पटकथा लेखकों पर जो बिचारे अपनी व्यवसायिक बाध्यताओं की वजह से ऐसा लिखते हैं। हमारे लिए वह अपने अज्ञान की वजह से दया के पात्र हैं क्रोध का नहीं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
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