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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/22/2011

क्रिकेट में गुस्सा फिक्सिंग-हिन्दी हास्य व्यंग्य-हिन्दी हास्य व्यंग्य (cricket matchemein gussa fixing-hindi hasya vyangya)

आस्ट्रेलिया का कप्तान विश्व कप क्रिकेट कप प्रतियोगिता में जिम्बाब्बे के साथ खेले गये मैच में रनआउट हो गया। यह खबर खास न होती अगर रनआउट होने से खफा उस कप्तान ने अपने डेªसिंग रूप में आकर टीवी को अपना बल्ला न दे मारा होता। टीवी टूटा कि उसका कांच पता नहीं। मगर बताया गया कि टीवी टूट गया।
बिचारा कप्तान क्या करता? जब वह रनआउट होकर आया होगा तो उसने उसका रिप्ले यानि दृश्य का पुर्नःप्रसारण वहां देखा होगा। वह तो मैदान से ही गालियां बकता आया था इसलिये उसके साथियों को टीवी बंद कर देना चाहिए था। ऐसा उन्होंने नहीं किया। वैसे आस्ट्रेलिया के कप्तान का गुस्सा किस बात पर उतरा होगा? क्या वाकई अपने आउट होने के दृश्य के पुर्नप्रसारण पर या फिर उसमें कोई ऐसा विज्ञापन आ रहा था जिसमें अनफिट टीम इंडिया यानि बीसीसीआई के खिलाड़ियों ने काम कर जमकर पैसा कमाया है। बीसीसीआई की टीम में अनेक खिलाड़ी अनफिट हैं ऐसा समाचार आ रहा है पर उनके विज्ञापन के धंधे पर उसका कोई असर नहीं है। ऐसा लगता है कि अनेक खिलाड़ी अनफिट थे और उनको वरदहस्त प्रदान करने वाले आर्थिक शिखर पुरुषों ने अपने विज्ञापनों की इज्जत के लिये टीम में शामिल करवाया। वैसे भी भारतीय खिलाड़ियों को फिटनेस की चिंता नहीं है। उनक ध्येय बस टीम में बने रहना है। उनके आकाओं को भी इसकी चिंता नहीं है क्योंकि उनको पैसा कमाना है।
धनपतियों के प्रबंधक अनफिट खिलाड़ियों को भी नायक बना देते हैं। उससे भी नहीं मन भरता तो भगवान बना देतें हैं। इससे भी काम नहीं बनता तो भगवान को ही भारत रत्न देने की मांग करते हैं। पता लगा कि क्रिकेट का भारतीय भगवान भी अनफिट है पर यह बात अभी दबी हुई है। इस पर प्रचार माध्यम चर्चा तब करेंगे जब विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता निपट जायेगी। मतलब भारत के कुछ कथित क्रिकेट भक्त जब अपना धन और आंखों के साथ ही शारीरिक और मानसिक रूप से फिटनेस कुर्बान कर चुके होंगे और तब वह आंसु बहायेंगे कि क्यों इस तरह अपना समय गंवाया। तब तक यही प्रचार माध्यम काफी धन कमा चुके होंगे।
आस्ट्रेलिया ही नहीं विश्व के अनेक खिलाड़ी इस बात से नाराज हैं कि वह बीसीसीआई की टीम के खिलाड़ियों से अधिक फिट और दमदार हैं पर उनकी कमाई उनसे कहीं बहुत कम है। वह जीतते हैं पर इनाम की राशि से उनका घर वैसा नहीं सजता जैसा टीम इंडिया के खिलाड़ियों का महल बन जाता है। अब उनको कौन समझाये कि उनके देश देश छोटे हैं जबकि भारत बहुत बड़ी जनसंख्या वाला देश है इसलिये उनकी जीत से अधिक बीसीसीआई की टीम पा दांव ज्यादा लगता है। ऐसे में उनको ऐसी अपेक्षा नहीं करना चाहिये-खासतौर से जब ऐसा भी सुनने को मिलता है कि अनेक बार ऐसा अवसर आता है कि जीतने में कम तथा हारने पर अधिक धन मिलने की आशा में खिलाड़ी जीजान से हारने पर ही आमादा हो जाते हैं।
बात आस्ट्रेलिया कप्तान के गुस्से की है और हम मानते हैं कि यह भी फिक्स रहा होगा। जिस तरह फिक्सिंग का भूत क्रिकेट के पीछे पड़ा है उसे देखकर अब कुछ भी संयोग या दुर्योग नहीं लगता। इसलिये इस गुस्से में कहीं न कहीं फिक्सिंग की सुगंध आ रही है-यही लिखना पड़ रहा है क्योंकि लोग अब लोग खुशबु और बदबू का मतलब ही नहीं जानते।
आखिर यह शक क्यों हुआ? इसलिये कि आजकल विश्व में मंदी चल रही है। भारत इससे बचा हुआ है पर इसके बावजूद इलैक्ट्रोनिक्स क्षेत्र में अब मांग वैसी नहीं है जैसी पहले थी। टीवी और एलसीडी की मांग सीमित है। वजह यह कि अब अधिकतर लोग सामान खरीद चुके हैं और महंगाई के इस युग में शादी में देने के लिये आदमी टीवी या एलसीडी खरीदता है या फिर अपना टीवी बिल्कुल बर्बाद हो जाये तब अपनी जेब ढीली करता है। आस्ट्रेलिया के कप्तान के पास कोई बड़ा विज्ञापन नहीं है कि जिससे यह लगे कि वह भारत के चौदहवें नंबर के खिलाड़ी के मुकाबले भी कमाता होगा। यह संख्या भी हम डरते डरते लिख रहे हैं जबकि संभव यह भी है कि संख्या पचास से ऊपर हो। ऐसे में टीवी और एलसीडी उत्पादों से जुड़े मध्यस्थों ने उसे फिक्स किया होगा। कहा होगा कि ‘गुस्से में टीवी तोड़ने का फैशन चलाने का प्रयास करो, अगर सफल रहा तो तुम्हें विज्ञापन दिलवायेंगे।’
वैसे जिस तरह बीसीसीआई की टीम की फिटनेस है और आगे के मैचों के उसके खेल के जो आसार दिख रहे हैं उससे तो लगता है कि भारत के कथित क्रिकेट भक्त भी इतना गुस्सा झेलेंगे। तब वह अपना सिर फोड़ें या बाल नौंचें इससे अच्छा है कि वह कोई चीज तोड़ने का विचार करें-यही इस दृश्य फिक्स करने का मतलब लगता है। हमारा देश बड़ा है और क्रिकेट देखने वाले ज्ञानी भी कम नहीं है और कथित देशप्रेम के जज़्बात पर बुरे खेल का प्रहार होगा तो उनका गुस्सा भड़केगा। यह गुस्सा व्यर्थ नहीं जायेगा, इसलिये वह चीजें तोड़ने का फैशन अपना सकते हैं, खासतौर से जब वह किसी गौरवर्ण व्यक्ति ने अपनाया हो-इससे बाज़ार का मतलब सिद्ध हो जायेगा। टीवी या एलसीडी टूट जायेगा तो फिर दूसरा खरीदना पड़ेगा। इतने बड़े देश में कितने लोगों को गुस्सा आयेगा यह पता नहीं क्योंकि भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के तंतु भी देश में जिंदा हैं। जीत में लोग अपने पौरुष का जश्न मनाते हैं तो हार में लोग हरिनाम लेने लगते हैं। मगर बाज़ार के प्रचार प्रबंधक तो नित नये नुस्खे निकालते ही रहते हैं। अगर टीवी और एलसीडी टूटने की घटनायें बाज़ार में गुणात्मक रूप से व्यापर बढ़ा तो आस्ट्रेलियाई कप्तान को टीवी और एलसीडी के बहुत सारे विज्ञापन मिल सकते हैं। उसमें वह जुबां हिलाता नज़र आयेगा। डायलाग अपने ही देश के सुपर स्टार की आवाज में हो सकता है।
‘‘ऐ, जब भी गुस्सा आये टीवी या एलसीडी तोड़ डालो, इससे मन शांत भी हो जायेगा और घर में नया माडल आ जायेगा नया माडल यानि.................जब भी गुस्सा आये तब..................नया माडल लायें।’
सच बात तो यह है कि अब तो कई घटनायें इस तरह फिक्स लगती हैं कि काल्पनिक व्यंग्य लिखना बेकार लगता है। अनेक बार तो हंसी छूट जाती है। वैसे जिस तरह देश का मनोरंजन क्षेत्र जिस तरह हास्य व्यंग्य के कार्यक्रम पेश करता है उससे तो यही लगता है कि वह समाचार बनाने के लिये ऐसी घटनायें भी कराता है।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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