कौन फरिश्ता
कौन शैतान
अब हम कहां तय कर पाते हैं,
छोटे और बड़े पर्दे पर
बाज़ार के मेकअप से
सजे चेहरों की चमक से
आंखें चुंधिया जाती हैं,
उनके अल्फाज़ों का मतलब
समझ नहीं आता
अदाऐं संगीत के शोर में लहराती हैं,
इसलिये हमारी तंग सोच में
चरित्र के सवाल कहां आ पाते हैं।
अब हम कहां तय कर पाते हैं,
छोटे और बड़े पर्दे पर
बाज़ार के मेकअप से
सजे चेहरों की चमक से
आंखें चुंधिया जाती हैं,
उनके अल्फाज़ों का मतलब
समझ नहीं आता
अदाऐं संगीत के शोर में लहराती हैं,
इसलिये हमारी तंग सोच में
चरित्र के सवाल कहां आ पाते हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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