सपने देखकर हमारा दिल डरता।
जिंदगी की कड़वी सच्चाई के साथ
जीने की ऐसी आदत हो गयी है
कुछ पल छोड़ दे साथ तो
राहत मिल जाती है दिमाग में
पर तब भी उसके वापस लौटने का डर रहता।
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पुराने साथी छूटते गये
नये जुड़ते गये।
जिंदगी का कारवां यूं ही चलता रहा
कहीं मनपसंद
तो कहीं नापसंद लोग मिले
जो डालते हैं नज़र गुजरे सफर पर
तो लगता है मन कभी न रहा काबू
ख्याल भी आते रहे बेकाबू
अपने खुद चलने का बस वहम था
हम तो समय की की लगाम गले में बांधे
जिंदगी की राहों में घोड़े की तरह उड़ते रहे।
कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
http://rajlekh.blogspot.com
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