चंद्रमा की जमीन पर अधिकार को लेकर नियम बनाने वालों की मांग करने वालों का कहना है कि जिस तरह हर देश के समुद्र और आकाश का बंटवारा हुआ है वैसे ही चंद्रमा की जमीन का बंटावारा होना चाहिये। अब सवाल यह है कि समुद्र और आकाश का बंटवारा तो देशों की सीमा के आधार पर हुआ है जो कभी बदलते नहीं है पर चंद्रमा तो घूमता रहता है। फिर अपने आकाश और समुद्री सीमा की रक्षा के लिये सभी देश अपने यहां सेना रखते हैं पर चंद्रमा पर अपने क्षेत्र की रक्षा करने के लिये तभी समर्थ हो पायेंगे जब वहां पहुंच पायेंगे। बहरहाल इसलिये संभावना ऐसी ही हो सकती है कि जो देश वहां पहुंच सकते हैं उनमें ही यह बंटवारा हो।
अगर चंद्रमा की जमीन का बंटावारा हुआ तो उसका आधार यह भी बनेगा कि जो देश वहां पहुंच सकते हैं उनके देशों का क्षेत्रफल देखते हुए उसी आधार पर चंद्रमा की जमीन भी तय हो जाये। यानि समर्थवान देशोंे का क्षेत्रफल एक इकाई मानकर उसे चंद्रमा की पूरी जमीन के क्षेत्रफल से तोला जायेगा। उसके आधार पर जिसका हिस्सा बना वह उसका मालिक मान लिया जायेगा।
बाकी देशों का तो ठीक है भारत का क्षेत्रफल तय करने में भारी दिक्कत आयेगी भले ही भारत को उसी आधार पर चंद्रमा पर जमीन मिले जितना उसका क्षेत्रफल है। यह समस्या चीन और पाकिस्तान से ही आयेगी। चीन कहेगा कि अरुणांचल के क्षेत्र बराबर की जमीन भारत के हिस्से से कम कर उसे दी जाये तो पाकिस्तान कहेगा कि कश्मीर बराबर हिस्से की जमीन उसे दी जाये और वह उसे चीन को देगा। पाकिस्तान अभी चंद्रमा पर स्वयं पहुंचने की स्थिति में नहीं है।
वह वहां पहुंचकर भारत से तो नहीं लड़ सकता पर उसके मित्र ऐसे हैं जो उसके बिना चल ही नहीं सकते। फिर वह मित्र ऐसे हैं जो भारत को सहन नहीं कर सकते इसलिये वह पाकिस्तान को भले ही वहां न ले जायें पर उसका नाम लेकर भारत के लिये वहां भी संकट खड़ा कर सकते हैं।
वैसे देखा जाये तो जब से भारत ने चंद्रयान भेजा उसके खिलाफ गतिविधियां कुछ अधिक बढ़ ही गयीं हैं। कहने को अनेक देश भारत के साथ मित्रता का प्रदर्शन कर रहे हैं पर उनके दिल में पाकिस्तान ही बसता है और उनके लिये यह मुश्किल है कि वह चंद्रमा पर उसे भूल जायें-खासतौर भारत उनके सामने चुनौती की तरह खड़ा हो।
इस विवाद में पाकिस्तान के मित्र निश्चित रूप से उसका पक्ष लेकर झगड़ा करेंगे। अगर बैठक चंद्रमा पर होगी तो वह कहेंगे कि चूंकि भारत यहां एक दावेदार है उसके विरोधी पाकिस्तान का मौजूद रहना आवश्यक है सो बैठक जमीन पर ही हो। जमीन पर होगी तो कहेंगे कि पहले आपस में तय कर लो कि ‘वहां की जमीन का बंटवारा कैसे हो?’
सोवियत संघ एतिहासिक गलती ने पाकिस्तान को अमृतपान करा लिया है इसलिये यह देश आज हर उस देश को प्रिय है जो कभी सोवियत संध के विरोधी थे। 31 वर्ष पूर्व सोवियत संघ ने अफगानिस्तन में घुसपैठ की थी तब पश्चिम के सोवियत विरोधियों के लिये पाकिस्तान ही एक सहारा बना और उसे खूब हथियार और पैसा मिलने लगा। उसने वहां आतंकवाद जमकर फैलाया। सोवयत संघ को वहां से हटना पड़ा और उसके बाद तो पाकिस्तान के पौबारह हो गये। एक तरह से पूरा अफगानिस्तान उसके कब्जे में आ गया। मगर हालत अब बदले हैं तो वहां फिर अफगानियों का शासन आ गया पर पाकिस्तान अपनी खुराफतों से वहां भी आतंक फैलाये हुए है। वह अफगानिस्तान को अपने हाथ से छिनता नहीं देख पा रहा हैं।
अखबारों में यह भी पढ़ने में आया कि वहां तो बच्चों को स्कूल में ही भारत विरोधी शिक्षा दी जाती है। कहने को तो सभी भारतीय चैनल कह रहे हैं कि सारी दुनियां पाकिस्तान की औकात देख रही है। हो सकता है कि यह सच हो पर इसका एक पक्ष दूसरा भी है कि ‘पाकिस्तान बाकी दुनियां की औकात भारतवासियों को दिखा रहा है कि देखो अपने आतंक से सभी घबड़ाते हैं पर दूसरे का यहां फैला आतंकवाद उनको बहुत भाता है। भारत को शाब्दिक रूप से सहानुभूति सभी ने दी है पर किसी में पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।
सभी देशों अब यह कह रहे हैं कि ‘आपस में बातचीत कर लो’। जब चंद्रमा पर जमीन का आवंटन होगा तब भी यही कहेंगे कि ‘पहले आपस में बातचीत कर लो।‘
इस तरह बाकी देश अपनी जमीन बांट लेंगे और भारत से कहेंगे कि ‘जब आपका पाकिस्तान से फार्मूला तय हो जाये तब जमीन आवंटित हो जायेगी।’
तब तक भारत क्या करेगा? उसके अंतरिक्ष यान क्या चंद्रमा की जमीन पर नहीं उतरेंगे? उतरेंगे तो सही पर उससे उसकी फीस मांगी जायेगी। जिस देश की जमीन पर उतरेगा उससे अनुमति मांगनी होगी। यह कहा जाये कि ‘आपका हक तो बनता है पर अभी आपको जमीन का आवंटन नहीं हुआ है।’
अगर हम तर्क देंगे कि ‘पाकिस्तान तो चंद्रमा पर पहुंच नहीं सकता तो उसके हक पर विवाद क्यों उठाया जा रहा है।’
दरअसल समस्या पाकिस्तान नहीं है। उसने अपनी स्थिति इस तरह बना ली है कि उसकी उपेक्षा तो कोई कर ही नहीं सकता। उसके पीछे फारस की खाड़ी तक फैले देश हैं जिनके पास तेल और गैस के कीमती भंडार हैं और बाकी अन्य ताकतवर देश उनके यहां पानी भरते हैं और वह सभी पाकिस्तान के बिना चल नहीं सकते।
कुल मिलाकर चंद्रमा पर जमीन विवाद में पाकिस्तान कोई कम संकट खड़े नहीं करेगा। उसके मित्र देश भी उसका फायदा उठाकर भारत की जमीन हथियाने का प्रयास करेंगे। हां, ऐसे में भारत के मित्र सोवियत संघ से ही उम्मीद की जा सकती है पर वहां भी उसने ऐसा कुछ किया तो पाकिस्तान के मित्र देश उसको चंद्रमा पर कर्ज या उधार के अंतरिक्ष यान देकर पहुंचा देंगे। वह हर हालात में लड़ेगा भारत ही। उसका एक ही आधार है भारत से लड़ना चाहे वह जमीन हो या चंद्रमा!’
------------------------
यह आलेख मूल रूप से इस ब्लाग ‘अनंत शब्दयोग’पर लिखा गया है । इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं हैं। इस लेखक के अन्य ब्लाग।
1.दीपक भारतदीप का चिंतन
2.दीपक भारतदीप की हिंदी-पत्रिका
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप शब्दज्ञान-पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें