राजनीति और सैन्य विशेषज्ञों की राय तो यही है कि पाकिस्तान के साथ जो इस समय राजनीतिक तौर पर सौहार्दपूर्ण संबंध हैं उसके चलते सीधी सैन्य कार्यवाही की धमकी देना ठीक नहीं है पर सीमित मात्रा में उसके आतंकी इलाकों पर हमला कर देना चाहिये। यह राय जो विशेषज्ञ दे रहे हैं वह न केवल अनुभवी हैं बल्कि उनका सम्मान भी हर कोई करता है।
भारत पाकिस्तान के बीच कोई बड़ा युद्ध होगा इसकी संभावना अगर न ही लगती तो यह भी लगता है कि कुछ न कुछ होगा। क्या होगा? इसका उत्तर देने से पहले पाकिस्तान की अंदरूनी स्थिति को समझना जरूरी है। पाकिस्तान में इस समय लोकतंत्र है। मुंबई के आतंकी हमले को लेकर वहां के लोकतांत्रिक नेताओं पर सीधे कोई आरोप नहीं लगा रहा। भारत भी नाराज बहुत है फिर भी वहां के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के प्रतिकूल कोई टिप्पणी नहीं दिखाई दे रही। दोनों नये हैं और लोकतांत्रिक नेता होने के नाते जानते हैं कि इस हमले से भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी लोग उससे नाराज हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ जरदारी तो भारत के साथ मित्रता के लिये अनेक बयान दे चुके हैं। प्रधानमंत्री गिलानी भी कोई भारत के विरुद्ध कोई अनर्गल बात नहीं कहते। इन दोनों के साथ कठिनाई यह है कि सेना पर अभी तक इनका वर्चस्व स्थापित नहीं हो सका है। दोनों साफ नहीं कहते पर यह सच है कि दोनों ही सेना से डरे हुए हैं और वह जानते हैं कि उनकी खुफिया ऐजेंसी आई.एस.आई. सेना और अपराधी शामिल भारत में आतंकी गतिविधियों में हैं पर कोई कार्यवाही कर पायेंगे इसमें संदेह है।
इन दोनों में भी एक अंतर है। जरदारी सिंध और गिलानी पंजाब प्रांत के हैं । पाकिस्तान में चार प्रांत हैं-पंजाब,सिंध,सीमा प्रांत, और बलूचिस्तान। आजादी के बाद पंजाब प्रांत का ही प्रभाव बाकी तीनों प्रांतों पर रहा है। सेना और प्रशासन पर उनका वर्चस्व रहा है पर बाकी तीनों प्रांतों में लोग आज भी पाकिस्तान का हृदय से अस्तित्व नहीं स्वीकार करते। भारत के विरुद्ध सबसे अधिक सक्रियता पंजाब प्रांत के लोग ही दिखाते हैं। शुरु में कबायली लोगों ने कश्मीर पर कब्जा करने में पाकिस्तान की सहायता अवश्य की थी पर बाद वह भी वहां की सरकार से असंतुष्ट हो गये। गिलानी भले ही पीपुल्स पार्टी के हैं और उन पर आसिफ जरदारी का पूरा नियंत्रण लगता है पर उनका पंजाबी होना भी यह संदेह पैदा करता है कि वह शायद ही भारत के हितचिंतक हों। जरदारी उस सिंध के हैं जो पाकिस्तान भक्ति से कोसों दूर हैं। बलूचिस्तान और सीमाप्रांत तो नाम के लिये ही पाकिस्तान का भाग हैं बाकी वहां के लोग अपना स्वायत्त जीवन जीते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ जरदारी ने तो पहले स्वयं ही माना है कि मुंबई में हुए हमले में उनके देश के उन तत्वों का हाथ हो सकता है जो दोनों के बीच दुश्मनी कराना चाहते हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि ‘उनकी सजा हमें क्यों देते हो?’ हालांकि बाद में भारत द्वारा 20 आंतकवादी मांगने के बाद उन्होंने इस बात से इंकार कर दिया। इससे यह तो पता चलता है कि पाकिस्तान में पंजाब की लाबी बहुत प्रभावी है और उसकी सहमति के बिना वहां काम करना कठिन है।
पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार होने के कारण भारत भी फूंक फूंक कर कदम रख रहा है क्योंकि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता कि वहां की लोकतांत्रिक सरकार वहां अलोकप्रिय हो। ऐसे पाकिस्तान के अंदर सीमित कार्यवाही करने की संभावना बनती दिख रही है हालांकि पाकिस्तानी सेना की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी यह भी देखने वाली बात है। इस सीमित कार्यवाही में पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविरों पर हमला करना भी शामिल है। वैसे अधिकतर विशेषज्ञ पाकिस्तान का बंटवारा करवाने के पक्ष में नहीं है पर कुछ लोग मानते हैं कि वहां की अदंरूनी राजनीति के गड़बड़झाले का लाभ उठाते हुए उसका विभाजन करना भी बुरा नहीं है।
भारतीय रक्षा,राजनीति और विदेश नीति विशेषज्ञ भी मानते हैं कि काबुल में हुए भारतीय दूतावास और अब मुंबई पर हमले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी,सेना और अपराधियों का हाथ तो है पर वहां के प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति और अन्य लोकतांत्रिक नेता उनसे जुड़े नहीं है। ऐसे में आक्रमण की स्थिति होने पर वहां की लोकतांत्रिक सरकार भला कैसे चुप बैठ सकती है? आखिर कैसे वह भारत का समर्थन कर सकते है?’
पाकिस्तान का पूरा प्रशासन तंत्र अपराधियों के सहारे पर टिका है। वहां की सेना और खुफिया अधिकारियों के साथ वहां के अमीरों को दुनियां भर के आतंकियों से आर्थिक फायदे होते हैं। एक तरह से वह उनके माईबाप हैं। यही कारण है कि भारत ने तो 20 आतंकी सौंपने के लिये सात दिन का समय दिया था पर उन्होंने एक दिन में ही कह दिया कि वह उनको नहीं सौंपेंगे। वैसे देखा जाये तो काबुल दूतावास पर भारतीय दूतावास पर हमले पर भारत में उच्च स्तर पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी पर चूंकि आम जनता उससे सीधे जुड़ी नहीं थी इसलिये इसका भारतीय प्रचार माध्यमों ने प्रचार भी नहीं किया। वैसे भी प्रचार माध्यम इस समय भले ही पाकिस्तान के प्रति रोष दिखा रहे हैं पर यही अपने कार्यक्रमों और प्रकाशनों में वहां के लोगों को स्थान देने के लालायित रहते हैं। भारतीय प्रचार माध्यम पाकिस्तान से आम आदमी के स्तर पर सपंर्क के नाम पर वहां के कुछ खास लोगों का यहां अपने व्यवसायिक उपयोग करते हैं। आज जब मुंबई पर हमला हुआ है तब उन्हें पाकिस्तान खलनायक नजर आ रहा है पर इस प्रचार में भी उनका व्यवसायिक भाव दिख रहा है-दिलचस्प बात यह है कि पाकिंस्तान से सभी प्रकार के संपर्क तोड़ने का नारा कोई नहीं लगा रहा है क्योंकि सभी अपने भविष्य की व्यवसायिक संभावनाओं को जीवित रखना चाहते हैं।
बहरहाल आने दिनों वाले में क्या होगा? कुछ नहीं कहा जा सकता है पर इतना तय है कि भारत और पाकिस्तान में अंदरूनी राजनीतिक गतिविधियां तीव्र हो जायेंगी। अगर आगे आतंकी घटनायें रोकनी हैं तो कुछ कठोर कदम तो उठाने ही होंगे। सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो फिर लोगों को समझाना कठिन होगा। पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा युद्ध न भी हो पर सीमित कार्यवाही अवश्यंभावी प्रतीत होती है क्योंकि इसके बिना भारत के शक्तिशाली होने का प्रमाण नहीं मिल सकता। अब यह देखने वाली बात होगी कि आगे क्या होता है? एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि जब तक भारत इस आतंकवाद का मूंहतोड़ जवाब नहीं देता तब तक लोग उसकी शक्ति पर यकीन नहीं करेंगे।
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