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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/21/2008

मरने की बाद जिंदा रहने के लिए-कविता साहित्य

अपने बुत वह बनवा रहे हैं
अपने मरने की बाद पूजने के लिए
भरोसा नहीं इस बात का कि
उनको बाद में कोई याद करेगा के नहीं
क्योंकि काम ही नहीं ऐसे किए

अपनों से अंहकार का व्यवहार
दूसरे का किया हमेशा तिरस्कार
बहुत है दूसरों को याद दिलाने के लिए
पर कोई ऐसा आईना बना ही नहीं
जो अपने छिद्र आदमी को दिखा सके
अपनी असलियत बताने के लिए

यही वजह है कि
हर आदमी उठाए जा रहा है
अपनी जिन्दगी का बोझ
बिना किसी का सहारा लिए
भीड़ तो बहुत जुटा लेता है
हर आदमी यहाँ पर
जिंदा रहने की कोशिश करता है
मरने की बाद जिंदा रहने के लिए
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1 टिप्पणी:

ghughutibasuti ने कहा…

यहाँ जीते जी जीना कठिन होता है फिर कोई मरकर क्यों जीना चाहेगा ?
घुघूती बासूती

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