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1/07/2008

कुंबले की दृढ़ता प्रशंसनीय

इस समय क्रिकेट जगत में जो खलबली मची है उसका कारण केवल एक ही लगता है वह यह कि कप्तान अनिल कुंबले का ही इसमें अधिक योगदान है। अगर यहाँ सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ होते तो सब कुछ आराम से हो जाता। टीम अभी भी आगे चली गयी होती। खेल भावना के नाम पर इन खिलाडियों ने अपना अपमान कई बार सहा है और तनाव में कई बार विकेट भी गंवाए हैं। अगर सौरभ होते वहीं कह सुनकर बात खत्म कर देते भले ही उनके खिलाड़ी मनोबल के साथ अपनी विकेट भी गँवा बैठते। कुल मिला कर सब कुछ खामोशी से होता।

नवजोत सिददू सही कहते हैं कि यह केवल हरभजन सिंह के अपमान का प्रश्न नहीं है क्योंकि आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी और प्रेस दोनों ही भारत का मजाक उडा रहे हैं। कुंबले कई बरसों से शांति से गेंदबाजी करते हैं और मैं उन्हें शेन वॉर्न और मुरलीधरन से अधिक अच्छा गेंदबाज मानता हूँ। वह न तो अपना समय अय्याशी में गुजारते हैं और न अधिक कोई नाटक करते हैं और आजकल मीडिया केवल उन्हीं लोगों का प्रचार करता है जो खेल से अधिक अन्य कार्यों में रूचि लेते हैं। बकनर ने एक बार नहीं कई बार भारतीय खिलाडियों के खिलाफ निर्णय दिए हैं और कई में मैच का रुख पलटा। अक्सर मैच फिक्सिंग को लेकर खिलाडियों पर संशय किया जाता है और कई खिलाड़ी अपनी सफाई भी देते हैं, पर अब यह संशय होता है कि कहीं दुनिया के कुछ अंपायर -जिनके गलत फैसले मानवीय गलती मान लिए जाते हैं-कहीं कुछ कारिस्तानी तो नहीं करते इस पर जांच होना चाहिए। एक नहीं ऐसे कई ऐसे मैच हैं जिनमें अंपायर के गलत फैसलों ने मैच का रुख पलटा है।
भारतीय टीम कभी भी कड़े फैसले नहीं ले पायी इसी कारण आज तक यह सब होता रहा है और क्रिकेट खेल अब यकीन करने लायक नहीं रहा है। अनिक कुंबले जो एक खामोश रहने वाले माने जाते है और ऐसे व्यक्ति बहुत खतरनाक होते हैं शायद आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी और मीडिया इसको समझ नहीं पाए। उन्होने सचिन और राहुल और जैसा कमजोर खिलाड़ी मान लिया और अब ऐसी स्थिति निमित हो गयी है जहाँ आईसीसीआई के लिए निकलना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि अब ऐसी हालत में खुद बीसीसीआई भी उसकी मदद नहीं कर सकती क्योंकि यहाँ नर्म का पड़ने का मतलब है कि लोगों का क्रिकेट से विमुख होना जो शायद इसके व्यवासायिक ढाँचे के लिए बहुत हानिप्रद होगा।

कुंबले जो कि कहा जाता है कि अपने कैरियर के अन्तिम मुकाम पर खडे थे एकदम हीरो बन गए हैं। सचिन, राहुल, और सौरभ से कहीं आगे निकल गए हैं। इन लोगों ने कभी इस तरह ध्यान नहीं दिया कि किस तरह देश को क्रिकेट में अपमानित किया जाता रहा है और इसकी वजह से ही कई जगह यह मान लिया गया है कि भारतीयों में रीढ़ की हड्डी ही नहीं है। अगर अब बीसीसीआई अपनी दृढ़ता दिखती है तो इस का अन्य क्षेत्रों में भी सम्मान बढेगा। आप कहेंगे क्रिकेट से इसका कया संबंध? जनाब जो देखते हैं वह सब क्रिकेट नहीं खेलते बल्कि हर अपने-अपने व्यवसायों में भी रहते हैं और अगर उनकी सोच वहाँ हमारे देश के लिए नकारात्मक बनती है और हर आदमी अपने रोजमर्रा के काम में अपनी तयशुदा सोच के अनुसार ही कार्य करता है ।

1 टिप्पणी:

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

कुम्बले अनुभवी है और ऐसे ही मौके पर दृढ़ता की अग्नि परिक्षा होती है !

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