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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/17/2007

पहले अपने दिल की सुनें

कभी बोलने का मन
तो कभी लिखने का जतन
कभी चाहें धन
अपने आप से लड़ते हुए
आत्म मंथन से डरते हुए
भागे जा रहे हैं हम
कोई और क्या सुनेगा
अपनी ही नहीं सुनते
कोई और क्या पढेगा
खुद ही अपना लिखा नहीं समझते
कोई और क्या देगा दौलत
हम खुद ही किसी को क्या देते
दूसरा कोई क्या काम करेगा
अपना दर्द बढाए जा रहे हैं हम
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आशा पर टिका है आसमान
पर वहाँ से नहीं टपकती
विश्वास पर चल रही हैं दुनिया
पर कोई जमीन पर नहीं उगता
यह तो दिल की बातें है
उन्हें वहीं पालना होगा
किसी और पर जिम्मा डालना बेकार होगा
निराशा में जाने से खुद बचें
विश्वास किसी का टूटने न दें
हमें अपनी राह चलनी है
भले ही कोई हमारी नहीं सुनता
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