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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/01/2007

ब्लोगर चला क्रिकेट मैच खेलने

ब्लोगर की कालोनी में क्रिकेट टीम में एक खिलाडी काम पड़ रहा था और उनकों दूसरी कालोनी से फेस्टिवल मैच खेलना था. पडोसियों को पता था कि ब्लोगर जब घर में होता है तो कंप्यूटर पर बैठा रहता है और शायद वह न चले. चूंकि मैच फेस्टिवल था और उसमें बड़ी उम्र के खिलाडी ही शामिल होने थे और लोग चाहते थे कि एकदम बड़ी उम्र के खिलाडियों की बजाय मध्यम उम्र के खिलाडी मैदान में उतारे जाएं और फिर उनकी कुछ अलग से पहचान हो। डाक्टर, वकील, प्रोफेसर और फिर उसमें एक ब्लोगर हो तो......इस ख्याल की वजह से ब्लोगर को टीम में खेलने के लिए राजी कर लिया गया।

अपनी कालोनी की प्रतिष्ठा के लिए प्रतिबद्ध एक लड़का उनके पास गया और तमाम तरह की बातें कर उनसे बोला-'लोग तो और भी हैं पर आप तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ब्लोगर हैं यह बात हमें उन कालोनी वालों को बताना है। अरे! इस पूरे इलाके के आप अकेले ब्लोगर हैं और हमारी कालोनी में रहते हैं और जब आप क्रिकेट खेलेंगे तो सब दंग रह जायेंगे। आप पहले क्रिकेट खेलते रहे हैं हमें यह बात पता है।'

ब्लोगर ने कहाँ-'यार तुम लोग तो कभी मेरा लिखा पढ़ते नहीं हो और वहाँ इस बात को मानेगा कौन? कभी कमेन्ट वगैरह तो देते नहीं हो।"

लड़के के कहा-''आप क्या बात करते हैं। यहाँ कई लोग आपका लिखा पढ़ते हैं।पर यह कमेंट क्या होता है आपने बताया ही नहीं।''

ब्लोगर ने कहा-'अगर तुम पढ़ते होते तो मैं फ्लॉप ब्लोगर नहीं कहलाता। खैर! तुम कह रहे हो तो चलूँगा।'

निर्धारित दिन को वह मैदान में पहुंचा। उसकी कालोनी के कप्तान ने टास जीता और ओपनिंग में ब्लोगर को इसलिए भेजा कि वह पुराना खिलाडी है कुछ रन तो बना ही लेगा। ब्लोगर भी पूरी तैयारी के साथ अपने पुराने पैड, दास्ताने, और टोपी पहनकर बल्ला लेकर मैदान में पहुचा। उधर गेंदबाज गें फैंकने की तैयारी में था इधर विकेटकीपर ने उससे कहा-'क्या आप ब्लोगर हैं?'

ब्लोगर ने उसकी बात को सुना और जवाब देने की बजाय इधर उधर देखा कहीं भी दर्शक दीर्घा में कालोनी के लोगों कोई दिखाई नहीं दिया। वह वापस लौट पडा। पीछे-पीछे प्रतिपक्षी टीम के खिलाड़ी चिल्ला रहे थे-'जनाब कहाँ जा रहे हैं?' अरे, मैच शुरू हो रहा है।'

मगर ब्लोगर ने किसी की नहीं सुनी और पैविलियन में अपने कप्तान के पास पहुच गया और बोला-" अभी मैच शुरू मत करो। यहाँ मेरे लिए कमेन्ट देने वाला कोई नहीं है। मेरे दो शिष्य और दो शिष्याएं अभी आने वाले है।उनको मैंने कमेन्ट देने के लिए बुलाया है।'

सब हक्के-बक्के रह गए और एक दूसर से बोले-यह ब्लोगर है यह तो हमने सुना है, पर कमेन्ट का क्या लफडा है।'

इतने में उसके शिष्य और शिष्याएं वहाँ कमेंट के होर्डिंग लेकर पहुचं गए। उन पर लिखा था-'बहुत सुंदर', 'मजा आ गया', 'बहुत खूब' और आदि। एक शिष्य बोला-'सर!वह पेंटर ने हमें बहुत लेट से यह सामग्री दी। इसलिए हमें देरी हो गयी।'

ब्लोगर ने उनकी भी नहीं सुनी और होर्डिंग पढ़ने लगा और बोला-'इसमे ''वाह क्या जोरदार हिट है' वाला होर्डिंग नहीं दिखाई दिया। मैंने उसे पैसे तो पूरे दिए थे।"

उसकी एक शिष्या सहमते हुए बोली-'सर, उस पर गलत लिख गया था।' वाह क्या जोरदार हेट है' लिखा था। पेंटर ने कहा मैं ठीक कर देता हूँ पर हमें सोचा कि देरी हो जायेगी।''

ब्लोगर का मूड उखड गया फिर भी मैदान में उतरा। अब मैच भी जिस तरह होना था हुआ। ब्लोगर ने रन तो बनाए दो, पर गेंद फैंकने वाले इधर-उधर फैंकते कि वह वाइड होकर बाहर चली जाती और उस पर उनकी टीम को चार-चार रन कई बार मिले-पर इससे क्या? उसके दूर बैठे शिष्य यही सोच कर होर्डिंग लहराते रहे कि उनके गुरूजी का शाट है। उसकी वजह से दर्शकों को भी गलतफहमी हो जाती कि ब्लोगर ही रन बना रहा है। वह आउट होकर लौट रहा था तब भी होर्डिंग लहराये जा रहे थे। उसके लौटने पर कप्तान ने कहा-क्या खूब रन बनाए।'

ब्लोगर ने बोलिंग नहीं की पर उनकी टीम जीत गयी। वापस लौटते हुए एक शिष्या अपने साथी से कहा-'हमारे सर ने रन तो दो ही बनाए। मैंने स्कोरर से पूछा था।'

एक शिष्य ने उससे कहा-चुप! तुझे ब्लोग बनाना सीखना है कि नहीं, और सीख गयी है तो बाद में कमेन्ट चाहिए कि नहीं।

शिष्या चुप हो गयी और ब्लोगर विजेता की तरह सीना ताने चलता रहा।

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मुख्य मुद्दा है कि सीना तना रहना चाहिये और कमेन्ट मिलते रहें बाकि तो नोंचा खंरोची चलती रहेगी कि बालर ने रन दे दिये कि खिलाड़ी खुद हार गये. :)

वैसे कोई प्रतिस्पर्धा का विषय नहीम किन्तु अन्त में विजयी वही, जो जीता.

बेनामी ने कहा…

'बहुत सुंदर', 'मजा आ गया', 'बहुत खूब'

Sagar Chand Nahar ने कहा…

बेहतरीन व्यंग्य, मजा आ गया।
दुर्भाग्य से कमेंटरूपी रन ज्यादा नहीम बन पाये, इतनी जबरदस्त बेटिंग करने के बाद भी। :)
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल

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