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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/20/2007

भीड़ में अकेलापन

घर में उसे अकेलापन डराने लगा
और वह भीड़ में पहुंचा
उससे बचने के लिए
वहाँ भी उसने सबको अकेले
अपने लिए ही सोचते देखा
भीड़ में सब बोल रहे थे
पर कोई खडा नहीं था सुनने के लिए
उसने सोचा वही
जब सब अपना दर्द सूना रहे हैं तो
स्वयं हीसबकी सुन लेता है
शायद बाद में कोई तैयार हो जाये
उसकी बात सुनने के लिए
सबकी बात सुनते वह हैरान हो गया
भूल गया कि उसका दर्द क्या था
जिसको लेकर वह इतना परेशान हो गया
वह चल पडा फिर अपने घर
दूसरों के दर्द की तस्वीर लिए
अब वह अकेला नहीं था
दूसरों की आपबीती भी उसके साथ थी
उसे अकेलेपन में समझाने के लिए

1 टिप्पणी:

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

आपने बहुत बढि़या लिखा है। पढ़कर अच्छा लगा,बहुत खूब!

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