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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/12/2007

अकडम-बकडम लिखते तो हिट हो जाते

पहले ब्लॉगर ने उसी मित्र से दूसरे ब्लॉगर का पता निकाला। उससे पता लगा कि वह उसके पास में स्थित गाँव में ही रहता है। दरअसल पहले ब्लॉगर का घर भी शहर के बाहर कालोनी में था, और वह गाँव उससे बहुत ज्यादा दूर नहीं था। पहला ब्लॉगर कई बार उस गाँव में जा चुका था।

उसने साइकिल उठाई और वहां चल दिया। पक्की सड़क से होते हुए वह उस कच्ची सड़क की ओर मुड़ा जो उस गाँव की तरफ जाती थी । उसने मोड़ पर स्थित पहले मकान के बाहर मैदान पर घास खोद रहे व्यक्ति को देखा और साइकिल से उतरकर आवाज दीं । वह व्यक्ति उसके पास आया। बनियान और तहमद पहने उस व्यक्ति से उसने दूसरे ब्लॉगर का नाम बताते हुए उसके घर पूछा-‘क्या तुम उस जानते हो कहाँ रहता है।’

उस व्यक्ति ने कहा-'इस नाम का कोई आदमी यहाँ नहीं रहता।आप गलत गाँव में आ गये हैं’

पहला ब्लोगर सोच में पड़ गया। उसे लगा कि उसके मित्र ने उसे धोखा दिया है-पर फिर लगा कि हो सकता है यह आदमी ही उसे नहीं जानता हो क्योंकि वह दूसरा ब्लॉगर उस गाँव का नहीं था शहर से उधारी वालों से परेशान होकर ही वह गाँव के बाहर ही कहीं रह रहा था-ऐसा ही उसके मित्र ने बताया था। फिर उसने उस आदमी को घूर कर देखा और कहा-‘अच्छा तो तुम हमें ही चलाने लगे। क्या बात है आज तुम मुझे ही नहीं पहचान रहे।”

वह दूसरा ब्लॉगर था। उसने भी उसे नहीं पहचाना था फिर उसके समझ में आया और बोला-'अच्छा तो तुम हो यार, मैं डर गया था की कोई गलत आदमी मेरा पता पूछ रहा है क्योंकि मुझे यहाँ कोई इस नाम से नहीं जानता। यहाँ मेरा दूसरा नाम है।”
पहले ब्लोगर ने कहा-'दूसरा कि तीसरा?'
दूसरा बोला-'चौथा। मैं अपने नाम बदलकर काम करता हूँ।इतनी संख्या है कि मुझे खुद याद नहीं रहता और तुम्हारा भी भेजा फ्राई हो जाएगा।'
पहला ब्लॉगर बोला-'अच्छा किया जो नाम बदल लिया हैं नहीं तो उधार माँगने वाले परेशान करते।'
दूसरा ब्लॉगर-‘तुमसे किसने कहा?’’

पहला ब्लोगार-‘’किसी ने नहीं। मैने अनुमान किया।'

दूसरा ब्लॉगर-‘’कहो कैसे आना हुआ।''
पहले ने कहा-''सोचा तुमसे मिल लूँ ।''
दूसरा-''क्या घर पर कोई काम नहीं था।''
पहला- 'मैं अपने काम सुबह जल्दी निपटा देता हूँ। जो काम तुम कर रहे हो घास काटने का वह मैं अपने गार्डन में सुबह ही कर चुका हूँ। इस समय तुमसे उस रिपोर्ट के बारे में पूछने आया हूँ जो मैने लिखी थी तुमने देखी कि नहीं?”

दूसरा ब्लॉगर-”मैने देखी थी , बहुत अच्छी थी । अब तुम यहाँ से चले जाओ। बडे दिनों बाद घर में एन्ट्री मिली है अगर तुम यहाँ रहे और मेरे घर के लोगों ने देख लिया तो हालत खराब हो जायेगी।''

इतने में गृह स्वामिनी बाहर आई और उसने पहले ब्लॉगर को नमस्ते की और अपने पति से बोली-‘भाई साहब को बिठाओ मैं इनके लिये चाय बनाकर आती हू।”

वह अन्दर चली गयी , पहला ब्लॉगर खुश हो गया और बोला-‘’ अगर चाय पिलाना है तो ठीक हैं, अन्दर चलते हैं। यहाँ कुछ गर्मी है।”

दूसरा ब्लॉगर-‘नहीं, बाहर ही बैठो। मैं अन्दर से कुर्सी ले आता हूँ। वैसे तुम्हें साइकिल पर देखकर वह समझी कि तुम कोई लेनदार हो। इसलिये चाय की पूछ लिया और मैं भी यूं सोच कर चुप रह गया कि तुम्हारा नमक खाया है।”

वह अन्दर गया और दो कुर्सिया ले आया।


पहले ब्लॉगर ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा-‘तुमने उस रिपोर्ट पर कमेंट नहीं दी ।’
दूसरा-‘मैने उसे पढा ही नहीं।”

पहला-'पर तुमने अभी कहा था कि रिपोर्ट देखी थी।”
दूसरा-‘हाँ पर मैने यह कब कहा की मैने उस पढा है।?”

पहला-“तुमने कब देखी थी?

दूसरा –‘’तुमसे मिलने के अगली रात दस बजे को।

पहला-“पर मैने तो उसे रात को एक बजे प्रकाशित किया था।'
दूसरा-''अरे यार, तुम भी ऐसे ही हो। तभी मैं कहूं मुझे दिखाई क्यों नहीं दी। वैसे तुमने रात को एक बजे रिपोर्ट क्यों डाली, यह कोई टाइम है?”

पहला-''इसलिये कि घर में सब सो रहे थे।'

दूसरा-‘तुम यार इतना डरते हो?’
पहला-'यह तुम कह रहे हो। मैं नहीं चाहता की मुझे तुम्हारी तरह कहीं ओर ठिकाने ढूंढने पडे।'

दूसरा-अच्छा छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हारी रिपोर्ट हिट हुई या फ्लाप?
पहला-'एकदम फ्लाप?"
दूसरा-'तुमने रिपोर्ट् के बारे में अकडम्-बकडम लिखा कि नहीं? मैं अपनी भाषा में कहूं तो............तुम्हारी भाषा में ही कहता हूं कि अभद्र शब्द............लिखे कि नही"

पहला-'यह क्या होता है? यह कौनसी विधा है।"
दूसरा-'जब यह नहीं जानते तो लिखा क्या होगा? खाक! इसलिये तो रिपोर्ट फ्लॉप हो गयी ।अकडम-बकडम लिखते तो हिट हो जाते. '

पहला--'यह करना जरूरी है।'

दूसरा-'यह फ़ैशन है।"
पहला-'यह में नहीं कर सकता।'

दूसरा-इसलिये तो तुम्हारा लिखा मेरी समझ में नहीं आता और कमेंट नहीं देता और तुम फ्लॉप हो। मेरी भाषा में लिखो तो मैं खूब कमेंट दूं।"

पहला ब्लोगर-'तुम्हारी भाषा सीखने की मुझे जरूरत नहीं है, मैं तो तुम्हें यह बताने आया था कि भईया रिपोर्ट पढ लेना।'
दूसरा-'अब क्या खाक पढ लेना। हो गयी पुरानी। वैसे किसी ने कमेंट दी।'
पहला-'हां! जो मेरे दोस्त हैं उन्होने दी।'

दूसरा-'ब्लोगरों से दोस्ती। वहां भला कोयी है दोस्ती लायक!'
पहला-'हां, तुम ठीक कह्ते हो। सब भले लोग हैं, तुमसे दोस्ती करने लायक तो नहीं हैं।'
दूसरा-'क्या मैं बुरा हूं। देखो मेरे मोहल्ले में आकर यह बद्तमीजी नहीं चलेगी। यह ठेका तो हमने ले रखा है। ऐसी कमेंट लिख जाऊंगा कि छोडो यार.....'

पहला-'ऐसा सोचना भी नहीं। तुम्हें गलतफ़हमी है कि पहले की तुम्हारी तो गल्तिया माफ़ कर चुका हू, अभी तक तुमसे हिसाब बकाया है।'

दूसरा ब्लोगर गुस्से में उसे घूर रहा था फ़िर बोला-'वह तो तुम्हारे छ्द्म नाम का ब्लोग था।

"पहला-"वह सब ठीक है, पर तुम अपने कहे पर लिखी रिपोर्ट पर कमेंट तो देते।"
दूसरा-"जब पढे ही नहीं तो क्या खाक देता?"
पहला-"तो अब पढ कर देना।'
दूसरा-पढ़ने के बाद तो मैं किसी को कमेंट नहीं देता।
'पहला-'तो बिना पढे ही दे देना।"
दूसरा-' यार तुम मेरे मुहल्ले में आकार मुझे तंग मत करो ,वरना ऐसे कमेंट दूंगा कि ........छोडो यार।'
पहला- ''तुम्हारा मोहल्ला। गुरु तुम किस गलतफहमी में हो। हम दोनों का एक ही मोहल्ला है। इस गाँव में मैं कई बार आता हूँ और ज्यादा दूर नहीं है।'
इतने में एक बच्चा अंदर से चाय के दो कप ले आया और रख कर चला गया।पहले ब्लोगर ने तत्काल एक् कप उठा लिया तो दूसरा बोला कि-'क्या यार घर से चाय पीकर नही चले थे क्या कि मेरे कहने से पहले ही कप उठा लिया।
'पहला-"तुम उठाने के लिये कहते?'
दूसरा-"नही!"

पहला-"मुझे मालुम था। वैसे चाय अच्छी बनी है।"

दूसरा-हमारी पत्नी ने तुम्हें शहर से आया लेनदार समझ लिया इसलिये ऐसी स्पेशल चाय पिलाई है-और मैं भी तुम्हारे घर पर नाश्ता कर आया हूं इसलिये झेल रहा हूं।"

चाय पीने के बाद पहला ब्लोगर जाने के लिये तैयार हुआ तब दूसरा ब्लोगर बोला-'यहां किसी को मत बताना कि मैं ब्लोग लिखता हूं। हम दोनों दोस्त हैं और एक ही मुह्ल्ले के हैं, यह भूलना नहीं।"
पहला ब्लोगर हंसते हुए बोला-'पर तुम तो कह रहे थे कि ब्लोगर भला दोस्ती लायक होते हैं? साथ में मुह्ल्ला भी याद आने लगा। चलो कोयी बात नही, मैं उम्मीद करता हूं कि तुम जल्दी समझ जाओगे कि दोस्ती किसे कहते हैं?'

दूसरा-'इस मीटिंग पर कब रिपोर्ट कब लिख रहे हो?'
पहला-कौंनसी मीटिंग.........अच्छा यह। कल सुबह छः बजे।
दूसरा-'इतनी सुबह क्यों?"
पहला-'उस समय सब घर पर सोते हैं।"
पहला ब्लोगर वहां से साइकिल पर उठाकर चल दिया। आधे रास्ते पर उसे याद आया कि यह तो उसने बताया ही नहीं कि हास्य कविता लिखनी है या नहीं। फ़िर उसने अपने सिर को झटका दिया कि चलो इस बार भी हास्य कविता नहीं लिखते। अगली मीटिंग में पूछ्कर लिख लेंगे।
नोट-यह हास्य व्यंग्य है और इसके पात्र कल्पित हैं अगर किसी की खुराफात से मेल हो जाये तो लेखक जिम्मेदार नहीं है। इन पंक्तियों का लेखक कभी किसी दुसरे ब्लोगर से नहीं मिला है।

5 टिप्‍पणियां:

Sajeev ने कहा…

वाह भाई आखिरी चेतावनी तो जोरदार है .... सचमुच मज़ा आ गया

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दीपक जी,अच्छा व्यंग्य किया है ब्लोगर ... पर।

mamta ने कहा…

आपने तो हमे confuse ही कर दिया। वैसे ब्लोगर्स पर व्यंग ?

Shastri JC Philip ने कहा…

अच्छा व्यंग है. लंबाई कम करके 300 शद्बों मे हर चीज को समेटने की कोशिश करो -- शास्त्री जे सी फिलिप



आज का विचार: चाहे अंग्रेजी की पुस्तकें माँगकर या किसी पुस्तकालय से लो , किन्तु यथासंभव हिन्दी की पुस्तकें खरीद कर पढ़ो । यह बात उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होनी चाहिये जो कमाते हैं व विद्यार्थी नहीं हैं । क्योंकि लेखक लेखन तभी करेगा जब उसकी पुस्तकें बिकेंगी । और जो भी पुस्तक विक्रेता हिन्दी पुस्तकें नहीं रखते उनसे भी पूछो कि हिन्दी की पुस्तकें हैं क्या । यह नुस्खा मैंने बहुत कारगार होते देखा है । अपने छोटे से कस्बे में जब हम बार बार एक ही चीज की माँग करते रहते हैं तो वह थक हारकर वह चीज रखने लगता है । (घुघूती बासूती)

बसंत आर्य ने कहा…

इतना लम्बा लेख लिखा कि पढते हुए हम कुछ छोटे हो गये. थोडा कम मे कहते तो और मजा आता.

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