प्रेम और युद्ध में सब जायज है। क्या इस तर्क को सही मान लिया जाये? पूरी तरह यथार्थ मीवन जीने वाले लोग इसे अपना आदर्श वाक्य मानते हैं। याद रखने लायक बात यह है कि यह सिद्धांत पश्चिमी अवधारणा आधारित है, और हमारी भारतीय और हिंदू मान्यताओं के ठीक विपरीत है। हमारे यहाँ प्रेम्में संयम और युद्ध में भी नियम माना जता है। प्रेम के बारे में कहा जाता है वह निस्वार्थ होना चाहिए और युद्ध में पीठ दिखा रहे शत्रु और शरण में आये शत्रु देश के नागरिक पर भी कभी प्रहार नहीं करना चाहिऐ। जिस शत्रु ने हथियार डाल दिए हौं और जिसने आधीनता स्वीकार कर ली हो उसके प्रति मैत्री का भाव रखना चाहिऐ। पश्चिम की विचारधारा किसी नियम को नहीं मानती।
प्रेम में सिर्फ लाभ और लोभ का भाव है। स्त्री से प्रेम है तो केवल उसके शारीरिक सौन्दर्य के आकर्षण के कारण और पुरुष है तो उसके धन के कारण है-यही कहती है पश्चिम की धारणा। पर हमारा दर्शन कहता है कि इस जीवन में भौतिक आकर्षण क्षणिक है और उसे मानसिक संतोष नहीं प्राप्त होता अत: निस्वार्थ प्रेम करना चाहिऐ जिससे मन में विकार का भाव न आहे और जिससे हम प्रेम करें उससे सात्विक रुप से देखें उसमे गुण देखे दोष नहीं, उसके प्रेम से हमारे मन को संतोष होना चाहिऐ न कि लोभ और लालच की भावना उत्पन्न हो जो अंतत: हमारे मन में विकार उत्पन्न करती है।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
aap paschim ke bare me aacchi tarah se nahi jante sayaydd ye log saccha pyar karte hain nahi biswas ho to aa ke dekh lijiye .. annkhon dekhi kah raha hoon
दीपक जी,यह सच है कि हिन्दू मान्यता के अनुसार आप की बातें सही हैं...लेकिन जहाँ तक प्रेम का संबंध है. वह आदमी के स्वाभाव पर निर्भर करता है कि वह कैसे चुनाव करता है या किस मान्यता को अपना आधार बनाता है।
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