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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/16/2007

नारद का मोह न छोड़ें, पर दूसरी चौपालों पर भी जाएँ

पिछले तीन दिनों से नारद की फीड में गड़बड़ चल रही है पर इसके बावजूद लोग एक दुसरे को पढ़ रहे हैं और कमेन्ट भी दे रहे हैं, यह एक अच्छा संकेत है। कुछ लोगों ने परेशानी अनुभव की जिनमें मैं स्वयं भी शामिल हूँ पर कुछ नये एग्रीगेटरों के आने से अब नारद पर निर्भरता कम होगी और लिखने पढने वाले अब अपना काम चला सकते हैं।
नारद पर लिखे एक लेख में मैंने लिखा था कि ऐसे मंच और भी बनेंगे पर इतनी जल्दी यह सब होगा इसकी आशा मुझे नही थी। इसके बावजूद मुझे लग रहा है कि कुछ लोगों का या जानकारी नहीं है या फिर नारद के प्रति मोह है कि वह किसी और के बारे में नहीं सोच रहे है। नारद के प्रति मोह खत्म नहीं हो सकता यह बात मैं जानता हूँ क्योंकि में अपने सब मित्रों को दूसरी चौपालों पर देख रहा था और बीच-बीच में नारद पर भी जाता था कि कहीं चालू तो नहीं हो गया। कुछ लोगों ने तो निराशा में अपनी पोस्ट भी डाली और वह भी दूसरी चौपालों पर दिख रही थी और मैं सोच था कि क्या उसके रचनाकार को पता है कि उसकी रचना पढी जा रही है?
बहरहाल मुझे यह अच्छा लगा और मेरा विचार है कि नारद के ठीकठाक होते हुए भी हमें इन दूसरी चौपालों पर चहल-पहल करने की आदत डालनी चाहिए। पिछले दो तीन दिन से मैंने जितनी कमेन्ट डालीं है उन्ही चौपालों में डाली हैं। जिनके निज पत्रक वर्ड प्रेस पर हैं उन्हें तो वियुज से पता लग जाता है जिनके केवल ब्लागस्पाट पर हैं उन सबको शायद इसकी जानकारी नहीं होगी कि उनको दूसरी चौपालों पर भी देखा जा रहा है। मैंने इन चौपालों पर जाकर देखा उन्होने नारद से कई चीजें सीखकर उसमें काफी सुधार किया है। मैं देख रहा हूँ कुछ लोग जानते हैं पर सब इसे जानते हैं इसमें मुझे शक है क्योंकि अगर वर्डप्रैस के ब्लोग पर वियुज नहीं होते तो मुझे पता ही नहीं लगता। खैर! मैं अपने जैसे अल्प ज्ञानी लोगों को बता दूं कि लोग लोग ब्लोगवाणी, चिट्ठा जगत और हिंदी ब्लोग कॉम के बारे में लिखते तो हैं पर सरल भाषा में कोई नहीं बता रहा कि यह क्या है?
यह नारद जैसी चौपालें हैं जो आपके ब्लोग को लिंक कर चुकी हैं और उनकी साज़-सज्जा बहुत अच्छी है सबसे बडी बात इण्टरनेट पर हिंदी को फलती-फूलती देखने का हमारा भाव है उसकी तरफ इसे कदम माना जाना चाहिए। निरपेक्ष भाव से उन लोगों के परिश्रम की प्रशंसा करना चाहिए-और अपनी चहल -पहल वहाँ भी करना चाहिऐ क्योंकि हम सब वहां जाकर एक दुसरे को पढेंगे तो संपर्क सतत बना रहेगा। नारद के मित्र वहां भी है और मेरे लिए दो ही चीजें महत्वपूर्ण हैं मेरा लेखन। और मेरे मित्र मैंने इसी ब्लोग पर उन चौपालों के झंडे-डंडे लगा दिए हैं ताकि एक नहीं तो दूसरी जगह जा सकूं, बिना पढे मैं लिख सकूं यह मेरे लिए संभव नहीं है।
कुछ जानकर लोग कहेंगे यह क्या कचडा लिख दिया पर मैं बता दूं कि भारत एक व्यापक देश है सभी कंप्युटर के जानकार और अंगरेजी पढे लोग लेखक नहीं हैं उसी तरह सारे लेखक भी कंप्युटर और अंगरेजी के विशेषज्ञ नहीं हो सकते -अगर कंप्यूटर पर लिखने की कोई ऎसी शर्त होती तो मुझे आप लोग यहां पढ़ नही सकते थे।
यह तो थी तकनीकी रुप से अपने जैसे अल्प ज्ञानियों से अपनी बात! अब मैं अपने जैसे फ्लॉप निज-पत्रक लेखकों (ब्लोगार्स ) को भी यही कहूँगा कि नारद के बाद वहां भी चहल कदमी अवश्य करें । नारद के और वर्डप्रैस के हिट वहाँ नही चल सकते -उन्होने अधिक और नियमित पोस्ट लिखने वालों की सूची अलग जारी कर रखी है -आप अपने वियुज कितने भी जुटाये वहाँ हिट नियमित और अधिक लेखन से ही संभव है। वहाँ की सूची में आपको पता चल जाएगा कि कौन कितने पानी में हैं। मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता पर कभी कभी यह लगता है लोगों ने लेखन को मजाक बना लिया है। मैंने कई ऐसे लेखक देखे हैं जो निरपेक्ष भाव से अच्छी रचनाएं दे रहे हैं पर कभी कभी उन्हें लगता है कि उनकी उपेक्षा जा रही है-ऐसे लेखको को वहाँ लगेगा कि वहाँ उन्हें सही प्रस्तुत किया जा रहा है। उनकी हिट दिखाने का तरीका बहुत सही है।
आखरी बात एग्रीगेटरों से समय आ गया है कि वह जो आचार संहिता बनाएं हुये हैं तो उस पर चलें भी-जिन नियमों को बना रहे हैं उन्हें न स्वयं तोड़े न किसी को तोड़ने दें। आपस में प्रतिस्पर्धी नही पूरक बनें क्योंकि अभी सफर बहुत लंबा है । किसी लेखक के साथ पक्षपात न करें । सभी के प्रति समान दृष्टिकोण रखें-चाहे कोई उन्हें पसन्द हो या न हो। साथ ही आचरण और मान मर्यादा का उल्लंघन न हो यह उनकी जिम्मेदारी है । वह यह कहकर नहीं बच सकते कि हम किस-किस पर निगाह रखेंगें । और हाँ आलोचनाओं से उन्हें घबडाना चाहिए। जब आप सार्वजनिक काम करते हैं तो आपको जहाँ प्रशंसा मिलती है तो आलोचना झेलने के लिए भी तैयार रहना चाहिऐ।
जिस तरह में एग्रीगेट्रों से कह रहा हूँ वैसे ही मैं लेखकों से भी कह रहा हूँ कि वह भी सभी के प्रति समान दृष्टिकोण रखें और सभी चौपालों पर आवक-जावक करें। नारद का मोह हमारे मन से खत्म नहीं हो सकता पर उस पर दबाव खत्म करने के लिए यह जरूरी है। इससे एक तो आपके अन्दर ज्यादा से ज्यादा लिखने की इच्छा पैदा होगी और स्वत: अच्छी रचनाएं बाहर आयेंगी और दूसरा हमारे पास इतना समय ही नहीं रहेगा कि हिट और फ्लॉप का लेखा-जोखा रख सकें। अब हिट और फ्लॉप का मुकाबला रचना के स्तर और संख्या के आधार पर होने वाला है । मैं छुपाऊंगा नहीं आज यह रचना मैं अपनी संख्या बढाने के लिए ही लिख रहा हूँ-क्योंकि एक चौपाल पर संख्या के आधार पर रेटिंग हो रही है।

4 टिप्‍पणियां:

ePandit ने कहा…

जिनके निज पत्रक वर्ड प्रेस पर हैं उन्हें तो वियुज से पता लग जाता है|

ये वियुज क्या है?

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दीपक जी बहुत बढिया और सटीक लिखा है।मै आप की बात से सहमत हूँ।

Udan Tashtari ने कहा…

अब एग्रीगेटर्स का जैसा भी है, आपके विचार बहुत बढ़िया है. जरा वियुज के विषय में विस्तार से बताया जाये. हमें इस विषय में तनिक भी ज्ञान नहीं है.

अनूप शुक्ल ने कहा…

सही लिखा है। नारद के अलावा दूसरे संकलक आने से नारद को भी सहायता मिलेगी अपने स्वरूप में सुधार के लिये। वियुज के बारे में बतायें।

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