प्रात: काले नाग की तरह
धरती पर फैली सडक
उसके दोनों और खडे
हरे-भरे फलदार वृक्ष
और रंगबिरंगी इमारतें
देखने योग्य सौन्दर्य
आंखों से देखकर
चाहत होती है कि
समेट कर रख लें
अपने हृदय पटल पर
पर यह मुमकिन न्हीएँ होता
हर पल आसमान में
अपनी गति से चलता सूर्य
उगने से डूबने तक की प्रक्रिया में
कुछ भी स्थिर नहीं रहने देता
न दृश्य, न दर्शक और
न वह सौन्दर्य
प्रात: जो दृश्यव्य लगता है
भरी दोपहर में वीभत्स हो जाता है
सायंकाल में शांत
और रात्रि में खो जाता है
अकेला रह जाता है सौन्दर्य
समय और काल से
रंग बदलता रहता है सौन्दर्य
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समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
बढ़िया कविता है। सौन्दर्य देश-काल के सापेक्ष है।
प्रात: जो दृश्यव्य लगता है
भरी दोपहर में वीभत्स हो जाता है
सायंकाल में शांत
और रात्रि में खो जाता है
अकेला रह जाता है सौन्दर्य
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी।
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