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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/29/2007

सास-बहु का झगडा, पडोसियों के मत्थे पडा

उनके दोनो बेटे-बहु प्रतिवर्ष की भांति भी इस वर्ष अपने माता-पिता के पास रहने के लिए आये। अब पति-पत्नी अकेले ही रहते थे। पति अब रिटायर हो गये थे, और दोनों ही सुबह, दोपहर और शाम एक मंदिर में जाते थे। उनके दोनों लड़के पढने के बाद शहर से बाहर नौकरी कर रहे थे और उनकी अच्छी आय थी। अपने माता-पिता से मिलने वह साल में पांच-छ: बार जरूर आते थे पर विवाह के बाद पिछले तीन वर्षों में यह आगमन केवल एक वर्ष तक रह गया था। इधर उनके पिताजी भी रिटायर हो गये थे। रिटायर होने से पूर्व भी पति महोदय दिन में दो बार अपनी पत्नी को सुबह-शाम जरूर मंदिर गाडी पर बैठा कर जरूर ले जाते थे, अब वह क्रम तीन बार हो गया था। उनकी पत्नी अपने मंदिर जाने का प्रदर्शन पडोस में जरूर करतीं और बार-बार अपने धर्मभीरू होने की चर्चा अवश्य करती थी। और कभी-कभी बिना किसी आग्रह के ज्ञान भी देतीं देती थी। उनका मंदिर घर से दो किलोमीटर दूर था और किसी दिन गाडी खराब हो या पति महोदय का स्वास्थ्य ठीक न हो तो उन्हें अनेक ताने सुनने को मिलते। वह कभी घर से मंदिर तक पैदल नहीं गयीं।

उस दिन वह अपनी बहुओं पर अपना ज्ञान बघार रहीं थीं-"अपने शरीर को चलाते रहना चाहिए, वरना लाचार हो जाता है अब देखो तुम्हारे ससुर कभी नाराज होकर मंदिर नहीं ले जाते तो मैं पैदल ही चली जाती हूँ कभी भी झगडा नहीं करती- अपने पति से कभी भी झगडा नहीं करना चाहिए। बिचारे पुरुष तो जीवन भर कमाने में ही समय गंवाते हैं।" वगैरह........वगैरह।

इधर वह अपने पति के साथ मंदिर गयी और उधर उनकी बहुओं ने पडोसियों से बातचीत शुरू की और फिर उसने सासके दावे की इस तरह सत्यता का पता लगाने का प्रयास किया कि वह बिचारे समझ नहीं पाए ।

एक पडोसन बोली -"हमने तो कभी भी तुम्हारी सास को पैदल जाते हुए नहीं देखा, अगर गाडी खराब हो या उनका मन न हो या उनके कोई रिश्तेदार आ गये हौं तो मंदिर न ले जाने के लिए उनको हजार ताने देतीं हैं। तुम्हारे ससुर तो सीधे हैं सब सह जाते हैं।"

बहुओं की ऑंखें खुल गयीं, उन्हें अपनी सास पर वैसे भी यकीन नहीं था- और अब तो पडोसियों से भी पुष्टि करा ली थी। उन्होने अपने-अपने पतियों को उनकी माँ की पोल बतायी-हालांकि पडोसन ने आग्रह किया था कि वह ऐसा न करे क्योंकि उनके जाने के बाद उनकी सास उनसे लडेगी।

इधर उनके बहु-बेटे अपने घरों को रवाना हुए और उधर वह अपने पडोसियों पर पिल पडी-"तुम लोगों से किसी का सुख देखा नहीं जाता। मेरी बहुओं को भड़काती हो। अब देखना जब तुम्हारे घर में बहुएँ आयेंगी तो मैं भी यही करूंगी।"

एक पडोसन बोली-"हमें क्या पता था कि तुम्हारी बहुएँ चालाकी करेंगी। पता नहीं तुमसे क्या बात नमक मिर्च लगाकर कह गयीं हैं।" मगर वह नहीं रुकीं और बोलतीं गयी-"तुम लोगों का क्या मतलब? मैं अपनी बहुओं से कुछ भी कहूं। तुन कौन होती हो बीच में दखल देने वाली ....."

उन्होने और भी बहुत कुछ कहा और इस तरह सास-बहु का झगडा पडोसियों के मत्थे आ चूका था।
नोट-यह कहानी काल्पनिक है

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