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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/13/2007

प्रयोग के लिए एक लेख

आज दीपकबापू...पर मेरे एक लेख पर मुझे मेरे एक साथी ने ईमेल भेजकर मुझे अपने दो पुराने तथा लेखो की याद दिलाई और लिखा कि तुम्हारे लेखन से मुझे प्रेरणा मिलती है, यह बताओ तुम इतना लिखता है तो बिकना सीख, नही तो भूखा रहना सीख-चिंतन तथा मैं क्यों लिखता हूँ-अपना विचार लिखे कैसे लेते हो।
वह मेरा पुराना मित्र है और हाल ही में जो मुझसे मिला था तो मैंने उसे अपने ब्लोग के पते दिए थे, तब से वह हर रोज मुझे संदेश भेजकर दाद देता है। वैसे वह स्वयं भी लेखक है पर आजकल अपनी कलम बंद कर कमाने में लगा है। मैंने उससे लिखा है कि मैं अपनी रचनाओं से कभी भी धन की आशा नहीं करता, और नही यह सोचता हूँ कि कोई मुझे पुरस्कार से नवाजेगा, वजह इसके लिए लेखन के अलावा अन्य प्रकार के कौशल की भी आवश्यकता होती है जो शायद मुझमें कभी भी नहीं आयेगी। मुझे अपने विचार और यादें कागज़ पर उतारने है बस इसी ख़्याल से लिखता हूँ-क्योंकि इससे मुझे राहत मिलती है । सबसे बड़ी बात यह है मुझमें नयी नयी चीजों के बारे में जानने कि जिज्ञासा रहती है । आज मैं इस निज-पत्रक पर अपनी बात लिखकर खुश होता हूँ तो केवल इसीलिये कि अपनी बात स्वन्त्रता के साथ कह सका ।
मैंने ऊपर जिन लेखों की चर्चा की उन्हें जब स्वयं पढे तो आश्चर्य चकित रह गया क्योंकि मुझे वह बहुत पसंद आये और ऐसा लगा कि जैसे मैंने स्वयं नहीं लिखें हौं किसी के लिखे पढ़ रहा हूँ। मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ । मैं आज अपने इस निज पत्रक पर अपने दुसरे निज पत्रक लिंक करना सीख रहा हूँ क्योंकि जब अपने निज पत्रक दूसरों के यहाँ लिंक देखता था तो सोचता था कि कैसे वह सब करते हैं है । मैं सीख कर उसे प्रयोग करता हूँ, ताकि पता चले कि सफल हुआ कि नहीं । मैं इन्टरनेट के बारे में जीरो था पर दोस्तो की बदौलत इतना सीख गया हूँ तो उन्हें बताना और पूछना जरूर है क्या यह ठीक है ? आगे मैं उनके ब्लोग भी लिंक करने और उन पर टिपण्णी लिखने का प्रयास करूंगा ।

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