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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/22/2007

अपनी सोच को बढाना है

NARAD:Hindi Blog Aggregatorजिनके दिमाग के हैं तंग घेरे
और दिल हैं सोच के अँधेरे
वही अपनी ख़ुशी और रोशनी के लिए
दूसरो के घर जलाते हैं
शहर को वीरान बनाते हैं
तुम उन्हें नहीं रोक पाओगे
जब तक अपने दिल और दिमाग में
इरादों के चिराग नहीं जलाओगे
अगर अपनी खुदगर्जी और
जिन्दगी को खौफ के साए से
नहीं जीते तो उन्हें क्या हराओगे
जागो दोस्तो
सारे जहां में रोशनी करने के लिए
चिराग जलाना है
अपने सोच को अपने घर से
सारे जहाँ तक ले जाना है
हम क्यों हारे और मारे जाते है
हम पर क्यों
आग लगाने वाले
अंधे राज किये जाते हैं
क्यों न उन्हें हरा पाते हैं
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7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छे भाव हैं, बधाई.

अभिनव ने कहा…

अच्छी रचना है। शुभकामनाएँ।

संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" ने कहा…

हिन्दी में गुड।

योगेश समदर्शी ने कहा…

बहुत अच्छी अभीव्यक्ति और जोश

अगर अपनी खुदगर्जी और
जिन्दगी को खौफ के साए से
नहीं जीते तो उन्हें क्या हराओगे
जागो दोस्तो
सारे जहां में रोशनी करने के लिए
चिराग जलाना है

बधाई

ghughutibasuti ने कहा…

सही कह रहे हैं आप !
घुघूती बासूती

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव हैं।आज सभी को सोच को बढाने की ही जरूरत है।एक अच्छी कविता के लिए फिर बधाई।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत अच्छी रचना है।

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