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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/27/2014

बंधुआ बुद्धिजीवी-हिन्दी व्यंग्य कविता(parde kie peechhe malik-hindi satire poem)



 पत्थर भगवान नहीं होते
पूजे जायें तो
फलदायी हो भी जाते हैं।

चंचल होता मनुष्य मन
मनाना आसान नहीं
भगवान सच हो या भ्रम
डराया जाये तो
उसके उच्छ्रंखल घोड़े
सवारी के हाथ भी हो जाते हैं।

कहें दीपक बापू पर्दे के पीछे
मनोरंजन के चलचित्र बनाने वाले
नहीं समझते आस्था की शक्ति,
जिससे पैसा मिले
उसकी करने लगती भक्ति,
जहां से मिला माल
उसी मालिक के इशारों पर
 बंधुआ बुद्धिजीवी  हो जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

Moti lal ने कहा…

acha likhte go
www.gyankablog.blogspot.com

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