समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/15/2014

अमृतसर यात्रा से सुखानुभूति से वापसी-हिन्दी चिंत्तन लेख(return from amritsir-hindi thought article)



    
            आज हमारी अमृतसर से वापसी हुई।  अभी तक हमने जो भी पर्यटन, धर्म तथा अन्य भाव से यात्रायें की उनमें सबसे सुखानुभूति देने वाली थी।  इसका मुख्य कारण यह है कि बचपन से ही धर्म भीरु होने के कारण कहीं न कहीं हमारे अंदर एक ऐसा अध्यात्मिक भाव था जिसे ऐसी यात्रा में जाना ही था।  इस पर भगवान विष्णु की उपासना तथा गुरुनानक देव के प्रति आस्था का संयुक्त भाव ऐसा रहा कि कभी उसमें विरोधाभास नहीं था।  कभी ऐसा भी नहीं लगा कि दो अलग छवियां हमारा आदर्श हैं। जिंदगी के हर दौर में यह लगा कि कोई ऐसी शक्ति है जो हमें सहारा दे रही है।  कालांतर में योग तथा गीता में रुचि होने के बावजूद भी अपने बचपन के भाव कभी विलोपित नहीं हुए।  एक लेखक से चिंत्तक या दार्शनिक बन जाने पर निरंतर अभ्यास और अनुभव से यह निष्कर्ष निकाला कि अगर धर्म या अध्यात्म के प्रति बचपन से रुचि जाग्रत नहीं हुई तो बड़ी उम्र हो जाने पर भक्ति तथा ज्ञान दोनों से ही संपर्क रखना संभव नहीं है। दूसरी बात यह कि कुछ लोग भक्ति आदि में रुचि नहीं लेते यह कहते हुए कि हम तो व्यवहार में ही शुद्धता बरतते हैं इसलिये उसकी कोई जरूरत नहीं है पर सच यह है कि सांसरिक विषयों में निरंतरता से वह उकता ही जाते हैं। भगवान के प्रति भक्ति भाव न हो तो उन्हें अध्यात्मिक ज्ञान तो होना ही चाहिये। हां, यह भी सच है कि धर्म के अनुसार व्यवहार करना और अध्यात्मिक का ज्ञान होना तो अलग अलग विषय हैं।  एक मुश्किल जरूर है कि भक्ति के बिना तत्वज्ञान के प्रति झुकाव हो ही नहीं सकता। इसके लिये कोई दैहिक गुरु या होना चाहिये या फिर पवित्र गं्रथों को ही गुरु मान लेना चाहिये।
            बहरहाल अमृतसर का मंदिर बचपन से हमारे दिल में बसा था।  गुरुनानक देव जी के प्रति हमारे मन में आत्मिक श्रद्धा है पर अभी जाना अभी तक भाग्य में नहीं बंधा था।  बुलावा आया तो चल दिये। स्वर्णमंदिर में इतने सारे लोगों की श्रद्धामय उपस्थिति के बीच भजन और गुरुवाणी का स्वर हृदय में ऐसा भाव पैदा करता है जिसका वर्णन करना संभव ही नहीं है।  मस्तिष्क में आये शब्द स्वर  किसी भी गति से बाहर आ सकते हैं पर हृदय के भाव अंदर से अंदर ही जाकर ऐसा आंनद देते हैं जिसको शब्द रूप देना सहज नहीं होता।  इस पर यात्रा पर आगे भी लिखेंगे। सत् श्री अकाल! वाहि गुरु की फतह! जय श्री कृष्ण जय श्री राम!
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग

4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
 5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 

कोई टिप्पणी नहीं:

लोकप्रिय पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर