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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/02/2012

साहुकार और लुटेरे का संगम-हिंदी कविता (sahukar and lutere ka sangam-hindi kavita)


आंखों के सामने चमकते हैं जो
चेहरे रोज
उनकी अदाऐं कई बार बदल जाती हैं,
कभी कोई नायक है
कभी बन जाता है खलनायक
अपनी अपनी भूमिका है
मिलता है पैसा
सभी को निभानी आती है।
कहें दीपक बापू
बाज़ार और प्रचार का खेल है यह
कभी पहजेदार पर ही लगता है
राहजनी का इल्जाम
फरियादी पाता है खजाना बचाने का ठेका
चाबी हाथ में आते उसकी नीयत बदल जाती है,
एक सिरे पर लुटेरे हैं
दूसरे पर खड़े साहूकार
बीच में फंसा है जमाना,
दोनों को पैसा है हथियाना,
एक काला है दूसरा  सफेदपोश
एक राह के राहगीर
उनकी दोस्ती हो ही जाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja ""Bharatdee""
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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