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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/07/2010

नया ज़माना-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (naya zamana-hindi vyangya kavitaen)

वह प्रतिदिन चौराहे पर आकर
अपना धर्मयुद्ध लड़ेंगे,
इसी तरह ही तो नये बुद्ध बनेंगे।
शांति के मसीहा बनने की ललक ने
कुछ इंसानों को चालाक बना दिया है
वह जानते हैं कि
तभी मिलेगी उनको सिद्धि
जब अपने शोर से
आम इंसानों को क्रुद्ध करेंगे।
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नया जमाना यही है
जिन इंसानों के चरित्र
जितने दागदार हैं,
लोगों की नज़र में वह
उतने ही इज्जतदार हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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