खेल खुले में खेले जाते हैं,
पर अब तो परदे की पीछे से
आये इशारों पर भी दाव चले जाते हैं.
खिलाड़ी हो गए हैं अभिनय के फन में माहिर
उसके असर में
परदे के पीछे खेल, आखों से नज़र नहीं आते हैं..
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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1 टिप्पणी:
sahi he bhai
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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