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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/25/2009

चंद्रयान-1 की चंद्रमा पर पानी की खोज-इसे कहते हैं सच्ची कामयाबी (chandrayan-1-Discovery of water on the moon - this is called a true success)

भारतीय चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की है-इसकी पुष्टि नासा ने कर दी है। चंद्रयान-एक में ‘मून मिलरोलाॅजी मैपर’ (मैप-3) लगाया गया था जिसे नासा ने लगाया था। इसके साथ ही अब चंद्रयान-2 में ऐसे यंत्र लगाये जा रहे हैं जो वह पानी उठाकर यहां लायेंगे। भारतीय विश्लेशणों ने विश्व में पहले से प्रचलित इन वैज्ञानिक धारणाओं को खंडित कर दिया है कि चंद्रमा सूखा है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने यह करिश्मा करके विश्व में यह साबित कर दिया है कि ‘हम भी किसी से कम नहीं’। साथ ही यह भी अब जाहिर होता जा रहा है कि भारतीय वैज्ञानिक संस्था इसरो और अमेरिका की नासा मिलकर काम कर रही हैं और यह संबंध दोनों की मित्रता को मजबूत कर रहा है। हालांकि भारत और अमेरिका के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों की चर्चा अक्सर होती है पर अंतरिक्ष और विज्ञान के क्षेत्र में जो यह मैत्री है वह दोनों के बीच एक प्रगाढ़ता को ठोस आधार प्रदान कर रही है-भारत के विरोधी भले ही अन्य बातों का बहाना करते हों पर उनके चिढ़ने की यह भी एक खास वजह है। इतना ही नहीं भारत में भी अमेरिका के विरोधी उससे अधिक मैत्रीपूर्ण संबंध रखने का विरोध करते हुए अन्य विषयों की चर्चा करते हैं पर उनके दिमाग में यही अतंरिक्ष विज्ञान संबंध होता है जिसको डर के मारे वह कहते नहीं हैं।
अतंरिक्ष विज्ञान में भारत का भविष्य उज्जवल है और यकीनन अनेक देश अपने देश के उपग्रह भेजने के लिये भारत से सहयोग प्राप्त करने के लिये तैयारी कर रहे होंगे। मुख्य समस्या पाकिस्तान और चीन के सामने हैं। पाकिस्तान के लिये तो यह संभव ही नहीं है कि वह भारत के सामने किसी भी स्तर पर सहयोग की याचना करे तो चीन के रणनीतिकारों के दिमाग में यह बात भरी हुई है कि हम अपनी श्रेष्ठता के साथ भारतीय प्रतिभाओं का दोहन करें। साफ्टवेयर क्षेत्र चूंकि निजी है इसलिये चीन वहां से मदद ले रहा है पर अंतरिक्ष विज्ञान में सहायता लेने का मतलब होगा कि वह राजनीतिक रूप से भारत के सामने झुके क्योंकि अंतरिक्ष क्षेत्र सरकारी है। भारत निजी क्षेत्रों से चीन को मिलने वाली सहायता तो नहीं रोक सकता पर जब तक चीन अपनी हेठी नहीं छोड़ेगा तब तक उसे अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग की अपेक्षा करनी ही नहीं चाहिए। चीन के विज्ञान क्षेत्र में प्रगति की चर्चा खूब होती है पर उसकी विश्व को कोई नई देन या अविष्कार नहीं मिला है। इधर पाकिस्तान तो एक उपनिवेश बन कर रह गया है-एक नहीं तीन देश उसे अपने अपनिवेश की तरह उपयोग करते हैं। हालांकि उसकेा मिसाइल, परमाणु तथा अन्य सामरिक सहायता धार्मिक आधार पर मिल जाती है। अंतरिक्ष में उधार और सहायता पर उसका काम चल रहा है। बस उसकी फिक्र है एक ही है कि किसी तरह भारत का रास्ता रोके। पहले अमेरिका और अब चीन उसको इसी उद्देश्य से सहायता करते हैं। मतलब यह है कि पाकिस्तान को भारत से दुश्मनी रखने मेें ही अनेक फायदे हैं इसलिये वह मित्रता रखने से रहा मगर चीन के सामने यह समस्या दूसरी है। मूलतः चीन एक छोटा देश है पर पूरा का पूरा तिब्बत देश और भारत की जमीन हड़पने के कारण उसका नक्शा बड़ा है-ऊन का व्यापार करने वाले तिब्बत शरणार्थियों द्वारा लगाये गये नक्शे पर तो यही विचार बनता है-और उसके रणनीतिकारों में अमेरिका जैसा सम्राज्यवादी बनने का सपना है और ऐसे में भारत की तरक्की उनको आतंकित किये देती है। इधर अपने ही देश में चीन की तरक्की और ताकत का भ्रम फैलाने वाले बहुत कथित बुद्धिमान लोग हैं जबकि उसके बाजार में बिकने वाले सामान आकर्षक दिखने के बावजूद घटिया होते हैं जिनकी कोई गारंटी होती है। भले ही उसक मुकाबले भारतीय उत्पाद कर्म आकर्षक और महंगे हैं पर उनके उपयोग की गारंटी तो होती है। भारत का चंद्रयान -एक भेजने के बाद उसने भी एक चंद्रयान भेजने की घोषणा कर अपने लोगों का दिल बहलाया था-क्योंकि उसे अपनी जनता का दिल बहाने के लिये भारत को लघु साबित करना पड़ता है-पर अभी उसने भेजा नहीं है।
चीन की घुसपैठ के समाचारों से व्यथित लोगों को यह समझ लेना चाहिये कि अंतरिक्ष तकनीक में भारत चीन से आगे है और अब यह संभव नहीं है कि वह भारत की तरफ अपने सैन्य कदम बढ़ा कर आतंकित कर सके। दूसरी बात जो महत्वपूर्ण है कि चीन और पाकिस्तान के पास भारत को लेकर अधिक विकल्प नहीं है। वह भारत के साथ अपने संबंध न सामान्य बनायें बल्कि अधिक मैत्रीपूर्ण भी रहें यही अब उनके लिये बेहतर है वरना भविष्य में होना यह है कि भारत अंतरिक्ष, विज्ञान, स्वास्थ्य, इंटरनेट तथा सूचना के क्षेत्र में दूसरों की सहायता करता नजर आयेगा और उससे यकीनन विश्व में हमारा प्रभाव बढ़ेगा जबकि चीन और पाकिस्तान अपनी अकड़ के चलते हुए अंदर से ही टूटने के दौर में पहुंच सकते हैं।
कल भारतीय वैज्ञानिकों ने सात उपग्रह बीस मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किये। आज उनके द्वारा ‘चांद पर पानी की खोज’ के समाचार की पुष्टि हुई है और यह एक कदम है जो भारत ने महाशक्ति बनने की तरफ बढ़ाया है।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे कहा जाता है उपलब्धि जो अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच प्राप्त की जाये। यह क्या कि किसी हिंदी फिल्म को विदेशी श्रेणी का आस्कर पुरस्कार मिल गया तो उस पर नाच रहे हैं या कोई भारतीय अमेरिका में धनपति बना या किसी उच्च पद पर पहुंचा तो उसे अपनी उपलब्धि मानकर गा रहे हैं। फिल्मों के नकली हीरो का गुणगाान कर रहे हैं। इससे अज्ञान बढ़ता है। हमारा दर्शन ज्ञान के साथ विज्ञान में भी उपलब्धि प्राप्त करने का भी संदेश देता हैं ऐसे में हमारे यह वैज्ञानिक ही देश के सच्चे नायक हैं। उनको सलाम करना चाहिये उनका गुणगान करना चाहिये क्योंकि उसी सत्य का रहस्योद्घाटन करते हैं जो बाद में ज्ञान बन जाता है और लोग उसकी राह चलत हैं। इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई।
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1 टिप्पणी:

अनुनाद सिंह ने कहा…

दीपक जी,

यह सचमुच एक महान उपलब्धि है। सभी देशवासियों को इस पर गर्व है। बधाई !

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