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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/03/2009

अंतर्मन-हिंदी कविता (anatarman-nindi sahitya kavita)


आँखों से देखे का अहसास
कौन कराता है.
कानों से सुने का
अर्थ कौन समझाता है.
हाथों से छुए का स्पर्श कौन दिखाता है.
मुहँ के पकवान का
स्वाद कौन उठाता है.
अरे, उस अंतर्मन को तुम नहीं जानते
इसलिए भटकते हुए
जिंदगी की राह चले जा रहे हो
अपनी अंहकार की अग्नि में जले जा रहे हो
बोलता नहीं है वह
पर होकर मौन तुम्हें रास्ता दिखाता है.

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