सपने साकार होंगे या टूटेंगे,
रिश्ते बढ़ेंगे या रूठेंगे।
कहें दीपकबापू दिल ख्यालों का घर
कुछ बनेंगे कुछ फूटेंगे।
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वह इश्क इश्क करते रहे
बताया नहीं उनके क्या किस्से हैं।
कहें दीपकबापू कागज रंगे शब्दों से
पता नहीं खुशी गम के कितने हिस्से हैं।
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हवा होने का बस आभास है,
सुगंध से लगता कोई पास है।
कहें दीपकबापू दिल ढूंढे वफा
दिमाग में शंकाओं का वास है।
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अपने अंदर खौफ छिपा
गैरों को वीरता सिखा रहे हैं।
‘दीपकबापू’ कानों से देखते सब
सबको नयी राह दिखा रहे हैं।
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दिल का चैन बाज़ार मे बिकता है,
दाम जितना बड़ा दिखता है।
कहें दीपकबापू झूठा सौदागर
अपना सच का दावा लिखता है।
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नयेपन के वादे भुला रहे हैं,
पुराने हादसों में झुला रहे हैं।
कहें दीपकबापू आंगन टेढ़ा है
नर्तक सबके दिल सुला रहे हैं।
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