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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/02/2017

वह इलाज की दुकान खोले हैं-दीपकबापूवाणी (Vah ilaz ki dukan khole hain-Deepakbapuwani)

हमदर्दी अब मुखविलास जैसी
रुखेपन की शिकायत मत करिये।
‘दीपकबापू’ हर हाल पर रहना सीखो
दिल में सोच ज्यादा न भरिये।।
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अहो! कल तुम याद आ रहे हो
क्योंकि आज तुम जैसा नहीं है
अहो! कल तुम जब आओ
तो लगे आज जैसा नहीं है।
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लोग मजा तभी तो लूटें
जब जज़्बात जिंदा रखें हों।
प्यार का स्वाद तभी तो समझें
जब दिल का रस चखें हों।
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वह इलाज की दुकान खोले हैं,
बीमारी फैलते देख उनके मन डोले हैं।
‘दीपकबापू’ टूटे मन की दवा नहीं
शरीर चाहे ठंडा अंदर जलते शोले है।
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उजड़े शहर जीत जश्न मना रहे हैं,
टूटी इमारतों की तस्वीर बना रहे हैं।
‘दीपकबापू’ अपना भलमानस चेहरा
हथियारों के सौदागर बना रहे हैं।
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