फंदेबाज मिलते ही बोला
‘दीपकबापू तुम्हें कभी
भूले भटके पुरस्कार मिला हो
वापस कर डालो,
अवसर अच्छा है
मुफ्त में प्रसिद्धि पा लो,
संभव है कभी आगे
कोई पुरस्कार मिल जाये,
शायद इस बहाने
फ्लाप कवि की छाप से
तुम्हारा नाम बाहर आये।
सुनकर चौंके फिर बोले दीपकबापू
‘साहित्य से तुम्हारा वास्ता नहीं,
शब्द फैंकना तुम्हारा काम
रचना तुम्हारा रास्ता नहीं,
चाटुकारों की फौज बड़ी
हम उसमें
नहीं फिट हो पाते,
आकाओं का मिलता सानिध्य
हम भी हिट हो जाते,
लिखना हमारी साधना है,
कविता आराधना है,
हम तो अंतर्जाल पर
एकांत में छाये,
वापस करने की चिंता नहीं
सम्मान
से अपने कदम दूर पाये,
न बना कोई
लिख लिखकर जग मुआ
दूजा तुलसी कबीर और रहीम
ढेर सारे सम्मानित ओढ़े शाल
खेल रहे राजसी जुआ,
उड़ा रहे कागजी धुंआ
लग रहा जैसे मयखाने से
भक्त बनकर बाहर आये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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