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7/31/2015

कातिल कहला रहे फरिश्ते-हिन्दी कविता(qatil kahala rahe farishtey-hindi poem)


बेघरों की फिक्र के गीत
लोगों को सुनाते हुए
अपने महल उन्होंने बना लिये।

बेबस और बीमारों के
दर्द का इलाज की बात करते
अपने पेट सीने से आगे तना दिये।

कहें दीपक बापू ताकत से
कातिल कहला रहे फरिश्ते
पनाह मांगते थे जिन पहरेदारों से
दौलत और शोहरत के दम पर
वह गुलाम बना लिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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