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7/02/2015

डिजिटल इंडिया सप्ताह-स्वदेशी अंतर्जालीय मस्तक न होना भारतीय पूंजपतियों में प्रबंध कौशल के अभाव का प्रमाण(digital india week-swadeshi internet sarvar n hona bhartiya poonjipatiyon ke parbandh kaushal ke abhav ka praman)

      हमारे देश में सरकार ने डिजिटल इंडिया सप्ताह का प्रारंभ किया है। डिजिटल इंडिया की सफलता के लिये बहुत सारा पैसा खर्च करने की बात चल रही है। अपना स्वदेशी अंतर्जालीय मस्तक यानि सर्वर बनाया जाना चाहिये। इतनी सारी टेलीफोन कंपनियां हैं पर आज तक एक भी स्वदेशी सर्वर नहीं बन पाया-इस पर अनेक विशेषज्ञों को हैरानी है।
     इतने उद्योगपति भारत में हैं। साफ्टवेयर में भारतीय इंजीनियर दुनियां में झंडा फहरा रहे हैं। फिर भी भारत में एक भी स्वदेशी सर्वर नहीं बन सका जो केवल अपने ही देश का अंतर्जालीय बोझ उठा सके और हम कह सकें कि यह है हमारा भारतीय अंतर्जालीय मस्तक। हैरानी की बात यह है कि यह अभी भी एक सपना लगता है
                              व्यापार सभी करते हैं पर प्रबंध कौशल किसी किसी में ही होता है।  हमारे देश में आबादी सदैव अधिक रही है। प्रकृत्ति की कृपा भी अन्य देशों की अपेक्षा यहां अधिक है।  मानव श्रम और उपभोक्ता  अधिक होने से यहां वणिकों के लिये सदैव एक बाज़ार रहा है पर उन्हें दैनिक उपभोग क्रय विक्रय करने में हमेशा सुविधा उठाने की योग्यता ही रखते हैं।  इसलिये उन्हें प्रबंध कौशल की आवश्यकता नहीं रहती। व्यापार में प्रबंध कौशल का पता सामने उपस्थित वस्तु के विक्रय से नहीं वरन् विक्रय योग्य नयी वस्तु के निर्माण तथा उसके लिये बाज़ार बनाने से ही पता लगता  है। इस मामले में पश्चिमी जगत अपने हमसे आगे है। विदेशी सर्वरों के चलते भारतीय संचार व्यवसायियों ने देश के उपभोक्ताओं का जमकर दोहन किया। वह भी तब जब भारतीय संचार निगम का प्रदर्शन गिराता गया। अपना पैसा देश में रखा या बाहर ले गये यह तो पता नहीं पर उन्होंने यहां संचार के क्षेत्र में किसी नये निर्माण को प्रोत्साहित नहीं किया। स्वदेशी अंतर्जाल मस्तक यानि सर्वर का न होने भारत के कथित पूंजीपतियों के प्रबंध कौशल तथा देश से प्रतिबद्धता रखने के अभाव को पूरे विश्व में दर्शाता है।
      बताया तो यहां तक जाता है कि अमेरिका अंतर्जालीय उपलब्धियों में हमसे आगे है पर ईरान और चीन भी कम नहीं है। एक बात हम यहां स्पष्ट कर दें कि हमारी दृष्टि से भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों की वैश्विक योग्यता को देखते  उनकी यह अग्रता हो ही नहीं सकती।  चीन तो यह बात स्पष्ट रूप से मान ही चुका है कि भारत की बौद्धिक क्षमता उससे आगे हैं।  ऐसे में यह सवाल उठता ही है कि आखिर हमारे देश के कथित सेठ क्यों नहीं ऐसा कर पाये? क्या यह उनकी इस मानसिकता का प्रमाण नहीं है कि वह अपने समाज या देश के किसी व्यक्ति को  इतना प्रसिद्ध या सफल होते नहीं देखना चाहते जो उनकी सामने खड़े होकर आंखें मिला सके? एक स्वदेश अंतर्जालीय मस्तक या सर्वर का न होना तो यही दर्शाता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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