21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जा रहा
है। हम यहां यह स्पष्ट कर दें कि पूरे विश्व के साथ भारत को भी योग दिवस विशेष रूप
से मनाना अवश्य मनायें पर आचार्यगण आगे भी अपनी नियमित गतिविधियों तथा अभियान नियमित रूप से जारी रखना भूलें नहीं। वह यह न
सोचें कि बस अपना लक्ष्य पाल लिया। अनेक धार्मिक विद्वान हमेशा पाश्चात्य संस्कृति
के प्रतीक मातृदिवस, पितृदिवस,
मित्र दिवस तथा प्रेम दिवस को भारत में
मनाने का विरोध यह कहते हुए करते हैं कि
हमारे पारपारिक संबंध नियमित जीवन का भाग होते हैं इसलिये उनके लिये विशिष्टता
दिखाना ही पाखंड है। योग दिवस का प्रस्तावक भारत ही है इसलिये यहां उस दिन विशेष
चर्चायें तथा गतिविधियां दिखाना इसलिये आवश्यक है क्योंकि हमारे यहां अभी भी योग
साधकों की संख्या नगण्य ही लगती है।
जहां पूरा विश्व योग दिवस मनाने की तैयारी कर
रहा है वहीं भारत में यहीं की अध्यात्मिक विचारधारा के परंपरागत विरोधी इसमें
सूर्य नमस्कार तथा मंत्रजाप की वजह से इसके विरुद्ध विषवमन भी कर रहे हैं। उनके भय
के मारे में कुछ लोग सूर्यनमस्कार तथा मंत्रजाप के विषय प्रथक रखकर योग साधना में
शामिल होने की सोच रहे हैं। सबसे हैरानी की बात यह कि भारतीय योग को विश्व पटल पर
लाने की जल्दी में अनेक प्रचारक भी यह सोचकर संतुष्ट है कि चलो आगे देख लेंगे। इस
विचार के चलते योेग का विषय केवल दैहिक स्वास्थ्य की सीमा तक ही सिमट रहा है।
मानसिक तथा वैचारिक शुद्धता की बात ही नहीं हो रही है जिनका संबंध ध्यान और
मंत्रजाप से है।
पाकिस्तान के इस्लामाबाद में एक शिविर चलने का
समाचार देखने को मिला। वहां अभ्यास करने वाले कुछ योग साधकों ने इसके लाभों की
चर्चा की तो अच्छा लगा। वहां के शिक्षक ने कहा कि योग को धर्म से जोड़ना ठीक नहीं
है पर अपने अभ्यास में वह ओम मंत्र तथा सूर्य के नाम के जाप नहीं कराते। दरअसल
भारतीय धार्मिक विचाराधारा से प्रथक रहने वालों को यहां की पूजा पद्धति ही नहीं
वरन् उसमें लिये जाने वाले नाम तथा मंत्रों से भी विरोध है। हम यहां स्पष्ट कर दें
कि ओम योग का अभिन्न भाग है। जिन लोगों को ओम शब्द से परहेज है उनके लिये योग साधना
एक अधूरा अभ्यास है। महत्वपूर्ण बात यह कि जब हम प्राणायाम के दौरान वायु अंदर बाहर ग्रहण करते हैं तब ओम शब्द की
ध्वनि स्वाभाविक रूप नजर आती है। जब सांस अंदर लेते हैं तो ऊपर की तरफ बढ़ते हुए ओ
और जब बाहर निकालते हैं तो म की ध्वनि अंदर से बाहर आती है। जब कोई प्राणायाम कर
रहा है तो वह ओम शब्द से स्वाभाविक रूप से जुड़ जाता है। अंतर इतना है कि इसकी
अनुभूति करने वाले साधक का मन अधिक प्रसन्न होता है।
जिन लोगों में भारतीय धार्मिक विचाराधारा के
प्रति चिढ़ है उन्हें समझाना तो कठिन है पर जो योगाभ्यास करते हैं उन्हें प्राणायाम
के अभ्यास के समय इस ओम ध्वनि की मधुरता का अनुभव अवश्य करना चाहिये।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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