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1/12/2015

विवेकानंद जयंती और सूर्य नमस्कार पर अभिनंदन-हिन्दी चिंत्तन लेख(vivekanan jayanti aur soorya namaskar par abhinandan-hindi thought article, suryna namasakar lekh)



            आज विवेकानंद जयंती पर मध्य प्रदेश के विद्यालयों में सूर्य नमस्कार का आयोजन किया गया है।  यह एक अच्छा प्रयास है। सूर्य नमस्कार योगासनों में पद्मासन, वज्रासन तथा सर्वांगासन की तरह देह, मन तथा विचारों में दृढ़ तत्व स्थापित करता है।  विधि के अनुसार करने पर सूर्य नमस्कार करने वाले साधक को स्वतः ही अपने अंदर तेज के संचालन का अनुभव होता है। हमारा मानना है कि इस तरह का आयोजन प्रतीकात्मक होने के साथ ही नियमित अभ्यास का विषय होना चाहिये। सूर्य नमस्कार से तन, मन और विचारों की व्याधियों से मुक्ति मिलती है।  व्याधियों से मुक्त व्यक्ति ही समाज में सम्मान प्राप्त कर सकता है।
            वैसे तो भारत में योग विद्या के जानकार कम नहीं है पर एक शिक्षक के रूप में अपने छात्र को पारंगत करने की कला सभी को नहीं आती।  अनेक पेशेवर तथा स्वयंसेवी योग शिक्षक हमारे देश में सक्रिय हैं। भारतीय योग संस्थान इस विषय में बिना प्रचार के काम करता है और उससे जुड़े निष्काम योग शिक्षक बिना किसी लाभ के लिये न केवल स्वयं अभ्यास करते हैं वरन् अपने शिविर में अन्य लोगों को अभ्यास कराने का भी आनंद लेते हैं।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है
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युध्येताभृतमत्यर्थ तदात्वे कृतवेतन।
न व्याधितमकर्मण्यं व्याधितं परिभूयते।।
            हिन्दी में भावार्थ-युद्ध के समय वेतन देने से सेना उत्साह से युद्ध करती है।  जिनकी देह में व्याधियां है वह किसी कर्म के योग्य नहीं रहते।  व्याधि वाले मनुष्य का सम्मान भी नहीं होता।
            अनेक लोग शैक्षणिक संस्थानों में योग साधना के विषय का अभ्यास को धार्मिक नज़रिए से देखते हैं।  हमें उनसे बहस में नहीं उलझना वरन् देश में समाज को स्वास्थ्य, नैतिक, वैचारिक तथा ज्ञान की दृष्टि से गिरते स्तर से बचाने का प्रयास करना है। हम मनुष्य का भौतिक स्वरूप भले ही स्थिर देख रहे हैं पर आंतरिक दृढ़ता तथा मानसिक संवेदनाओं के अप्रकट भंडार की कमी बहुत अनुभव होने लगी है।  दैहिक व्याधियों का बढ़ता प्रकोप प्रकट है पर मानसिक कमजोरी नहीं दिख रही।  ऐसे में किसी से अन्य व्यक्ति के सम्मान की आशा करना व्यर्थ है उसे व्यक्ति से नहीं की जा सकती जिसके अंदर आत्मसम्मान का भाव ही नहीं है।  जीवन के प्रति आत्मविश्वास का अभाव सभी में दिख रहा है।
            हम जैसे नियमित योग तथा ज्ञान साधक अपने अनुभव के आधार पर योगाभ्यास को जीवन जीने की ऐसी कला मानते हैं जिसका अन्य कोई विकल्प नहीं है।  इसलिये यह अपेक्षा करते हैं कि मध्यप्रदेश के विद्यालयों मेें सूर्य नमस्कार के बाद भी छात्र घर पर इसका अभ्यास कर अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। सभी को विवेकानंद जयंती तथा सूर्य नमस्कार के अभ्यास पर बधाई।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

Moti lal ने कहा…

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