गर्मी की तपती धूप में पसीने से नहाया बदन
सूख रहा गला प्यास के मारे
आंखें इधर उधर पानी के लिये ताकती हैं,
सूखे प्याऊ नहीं देते आसरा
तलाश करते हैं एक अदद दुकान की
जहां बीस रुपये की बोतल थामते हाथ में
मिली शांति जो विकास का पैमाना नापती है।
कहें दीपक बापू खैरियत है
हवा और धूप को
अभी तक मुट्ठी से पकड़ना संभव नहीं हुआ
बिकने से बची है इंसानियत
वरना सौदागरों की आंखें ढूंढती शिकार
आम इंसान की मजबूरी को नहीं भांपती हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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