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5/08/2014

प्राणायाम से व्यक्तित्व तेजस्वी बनता है-पतंजलि योग साहित्य के आधार पर चिंत्तन लेख(pranayam se vyaktitva tejswi bantga hai-patanjali yog sahitya)



      अगर हम पतंजलि योग साहित्य का अध्ययन करें तो उसमें आधुनिक आसनों की चर्चा नहीं मिलती है।  आसन से आशय केवल सुख से बैठने से है।  हमारी यह बैठक शुद्ध तथा समतल स्थान पर होना चाहिये। प्राणायाम के बाद ही एक तरह से योग की दैहिक प्रक्रिया प्रारंभ होती है।  प्राचीन समय में लोग श्रम आधारित जीवन बिताते थे इसलिये उस समय व्यायाम आदि की चर्चा अधिक नहीं हुई पर आधुनिक समय में योग शास्त्रियों ने यह अनुभव किया कि मनुष्य के पास श्रम करने के अवसर कम होते जा रहे हैं इसलिये उन्होंने अनेक प्रकार के आसनों का अविष्कार किया है।  यह अच्छी बात है पर यह बात ध्यान रखना चाहिये कि जहां यह आसन देह के विकार निकालते हैं वही मन में शुद्धता के लिये प्राणायाम करना आवश्यक है इसलिये योगाभ्यास के समय दोनों ही प्रक्रियाओं का समन्वय के साथ पालन किया जाना चाहिये।

पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
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उदानजयाजलपङ्कण्टकादिष्वसंङ्गउत्क्रान्श्र्चि।।
      हिन्दी में भावार्थ-उदान वायु को जीत लेने से जल, कीचड़ कण्टकादिसे शरीर का संयोग नहीं होता और ऊधर्वगत भी होती है।
समानजयाज्जवलनम्।
     हिन्दी में भावार्थ-समान वायु को जीत लेने से शरीर दीप्तमान हो जाता है।

      प्राणायामों के भी आजकल अनेक रूप प्रचलित हैं मगर हम पतंजलि योग साहित्य को देखें तो उसमें  प्राणवायु को अंदर लेकर उसे रोकना और उसे बाहर निकालकर स्तंभ लगाना ही प्राणायाम है। यह प्रक्रिया सहज है।  प्रातःकाल जब हम कहीं आसन लगाकर बैठें तो सांस धीरे धीरे लें और जब पूरी तरह भर जायें तो उसे रोककर अपना ध्यान अंदर केंदित करें।  उसके पश्चात पूरी रह सांस बाहर निकाल कर उसे लेना बंद कर फिर अपना ध्यान अंतर्मन में लगायें।  जितनी देर यह स्तंभन होगा उतनी ही मानसिक शक्ति बढ़ेगी।  जब इसका अभ्यास नियमित हो जायेगा तो देह तथा मन की कांति स्वयं को ही अचंभित करेगी तो दूसरे का कहना ही क्या?
      जो लोग प्राणायाम नियमित करते हैं उनका तेज स्वतः प्रकट होता है।  इस संसार में ऊंच नीच चलता रहता है पर जो योगाभ्यास करते हैं वह हर स्थिति में समान रहते हैं।  इसके लिये उन्हें कोई प्रयास करना नहीं होता।  योगाभ्यास प्रारंभ करने में संकल्प की आवश्यकता होती है। एक बात अगर यह अभ्यास करने की आदत हो जाये तो एक तरह से इसका नशा हो जाता है।  इसमें कोई संदेह नहीं है कि योगाभ्यास अंततः मनुष्य को एक शक्तिशाली व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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