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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/04/2014

संत कबीरदास दर्शन-वीर ही धर्म के काम में लिप्त होते हैं(sant kabirdas darshan-veer hee dharm ke kam mein lipt hote hain)



      एक समय था जब हमारे देश में पश्चिमी देशों में आत्महत्या की बढ़ी हुई घटनाओं पर हैरानी जताई जाती थी। उस समय भारत के अध्यात्मिक चिंत्तक अपने देश के लोगों में धर्म और भगवान के प्रति भाव की यह कहकर सराहना करते थे कि इसकी वजह से हमारे यहां इस तरह की घटनायें अधिक नहीं होती।  दुनियां के सबसे विकसित देश जापान में अक्सर हाराकिरी की घटनाओं की चर्चा होती थी।  कहा जाता था कि वहां इतना भौतिक सुख है कि उससे ऊबे लोग अंततः हाराकिरी कर अपना जीवन धन्य मानते हैं।
      अब भारत में भौतिकतावाद ने भी आत्महत्या की घटनाओं को जिस तरह बढ़ाया है वह चिंता का विषय है।  समय के साथ हमारे देश में विकास तो हुआ है वह वह एकदम असंतुलित है।  यह अलग बात है कि यहां संसार के भोगों से ऊबे लोग नहीं वरन् उससे न मिलने की निराशा में  अपनी देहलीला समाप्त करने का निर्णय लेते हैं। इसके अलावा संयुक्त परिवारों की परंपरा के पतन ने भी लोगों का जीवन एकाकी कर दिया है। सभी लोग अपनी भौतिक उपलब्धियों के भोग तथा प्रदर्शन करने में अपना जीवन धन्य समझते हैं। जिस तरह मोर नाचने के बाद अपने मैले पांव देखकर रोता है वैसी ही भौतिक पदार्थों के उपभोग में फंसे लोगों का भी है।  जब तक कोई वस्तु नहीं है उसकी इच्छा में दिन रात एक कर देते हैं। जब मिल जाती है तो फिर दूसरा का मोह पाले लेते हैं।  मतलब यह कि अध्यात्मिक ज्ञान के बिना समाज में संतोषी लोगों की कमी हो गयी है।

संत कबीरदास जी कहते हैं कि
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कायर का घर फूस का, भभकी चहुं पछीत।
सूरा के कछु डर नहीं, गज गीरी की भीत।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-कायर का घर फूंस का बना होता है जो आग की चिंगारी लगते ही धू धू कर जल जाता है। शूरवीर का घर इतना मजबूत होता है कि हाथी के चढ़ने से भी उसका दीवार नहीं गिरती।
कायर भागा पीठ दे, सूर रहा रन मांहि।
पटा लखाया गुरु पै, खरा खजाना खांहि।।
      सामान्य हिन्दी में भावार्थ-कायर संसार संग्राम में पीठ दिखाकर भागता है जबकि वीर वही खड़ा होकर प्रतिकार करता है। जिसने गुरु के संदेश का कर्म समझ लिया वह इस संसार के सच्चे सुख का भोग करता है।

      इस संसार में सबसे आसान काम यही है कि मन को अधिक से अधिक संग्रह में लगाया जाये।  ज्ञान प्राप्ति, सत्संग और योग साधना में सहजता से मन नहीं लगता पर जो इसमें संलग्न है वही जीवन भर आत्मविश्वास के साथ जीते हैं। भोग पाने के लिये मन तत्पर रहता है पर त्याग में जो सुख है उसकी अनुभूति विरले ही करते हैं।  लोग भौतिक उपलब्धि का बखान इस तरह करते हैं जैसे कि वीरता का काम किया है पर परोपकार करने में हिचकिचाते हैं।  यही कारण है कि आजकल अंदर से टूटे बहुत मिलते हैं जो बाहर से बहादुरी का पाखंड करते हैं।
      हम जब तक अध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली नहीं होंगे तब तक इस संसार में आत्मविश्वास से नहीं जी सकते यह अंतिम सत्य है। हम देख रहे हैं भौतिक विषयों में नाकामी होने पर जो लोग आत्महत्या करते हैं वह अपने परिवार तथा परमात्मा में प्रति घोर अपराध करते हैं। इस तरह की बढ़ती घटनायें एक तरह से हमारे समाज में अध्यात्मिक ज्ञान के प्रति लोगों में व्याप्त अरुचि का प्रदर्शन करती हैं। यही कारण है कि जहां हम पहले अपने देश में आत्म हत्या की घटनाऐं सीमित होने पर जहां गर्व करते थे वहीं अब समाज में कम होते आत्मविश्वास पर चिंताओं ने घेर लिया है।  इनसे बचने का एक ही उपाय है कि हम दिन का पूरा धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष में वैज्ञानिक रूप से बिताने का कार्यक्रम बनायें। इस काम में वीरता दिखाने की आवश्यकता है।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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