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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/13/2013

जारी है चूहों की मस्ती जारी है-हिन्दी व्यंग्य कविता (chuhon ki jaari hain masti-hindi satire poem)

उज्जवल वस्त्र पहने
राह पर चलते हुए लोग
नाक पर रुमाल रख देते हैं
जब आती सामने गंदी बस्ती,
मैले कपड़ो में खड़े बच्चे, महिलायें और पुरुष
उनकी नज़रों के सामने पड़ते
नहीं लगती उनकी कोई  हस्ती।
कहें दीपक बापू
ओ सभ्य लोगों!
अपने पद, पैसे और प्रतिष्ठा के
राज्य पर न इतराओ
शिकारियों का निशाना बनकर
जंगल के राजा सिंह की कौम
होती जा रही लापता,
जान आ गयी आफत में
जीभ ने जो की खून पीने की खता,
जिन चूहों को बेदम मानते हैं
हर घर में जारी है उनकी मस्ती।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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