गुलामों ने अपना स्वाधीनता दिवस
बड़े जोरदार ढंग से मनाया,
जिस मालिक के सामने वह
आंखे झुकाकर चलते थे
सीना तान सामने खड़े होकर
उसे फूलों का हार पहनाया।
कहें दीपक बापू
गुलामी के सच लगता जिनको सुहावना,
आजादी का सपना भी उनके लिये होता डरावना,
आदत अगर है अनुगामी बनकर चलने की
कांपते हैं हाथ पांव उन लोगों के
जिनको अपनी ताकत पर जिंदा रहने की
जिम्मेदारी का अहसास होता है
मगर अपने सिर पर
पाई हमेशा किसी दूसरे के हाथ की छाया।
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लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’,
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
बड़े जोरदार ढंग से मनाया,
जिस मालिक के सामने वह
आंखे झुकाकर चलते थे
सीना तान सामने खड़े होकर
उसे फूलों का हार पहनाया।
कहें दीपक बापू
गुलामी के सच लगता जिनको सुहावना,
आजादी का सपना भी उनके लिये होता डरावना,
आदत अगर है अनुगामी बनकर चलने की
कांपते हैं हाथ पांव उन लोगों के
जिनको अपनी ताकत पर जिंदा रहने की
जिम्मेदारी का अहसास होता है
मगर अपने सिर पर
पाई हमेशा किसी दूसरे के हाथ की छाया।
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लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’,
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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2 टिप्पणियां:
nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
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