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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/27/2011

कौन बनेगा करोड़पति-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकाएँ (kaun banega karodpati-hindi vayngya kshanikaen or hindi short poem)

गरीब और मजदूर लोग
अपने झुग्गियों और झौंपड़ियों में
सूखी रोटी खाकर
पर्दे पर करोड़ों के खेल देखते हुए
अपना दिल बहलाते हैं,
कभी न पूरे होने वाले सपने
देखते हुए यूं ही सो जाते हैं।
-------------------
पर्दे पर करोड़ों के खेल चल रहे हैं,
भूखों में रोटी के सपने भी पल रहे हैं।
सौदागरों ने हड़प ली बाज़ार कि रोशनी
गरीबों के घर टिमटिमाते दीपक जल रहे हैं।
--------------
कौन बनेगा करोड़पति
यह पता नहीं है,
पर्दे पर खेल देखते हुए
कई गरीब मर जाएंगे,
हर पल अमीर होने के सपने सजाएँगे
इसमें कोई खता नहीं है।
-----------

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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2 टिप्‍पणियां:

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

दीपक भारत दीप जी बहुत सुन्दर वक्तव्य आप के ..रचना ने बहुत कुछ मर्म कह डाला
भ्रमर ५

पर्दे पर करोड़ों के खेल चल रहे हैं,
भूखों में रोटी के सपने भी पल रहे हैं।
सौदागरों ने हड़प ली बाज़ार कि रोशनी
गरीबों के घर टिमटिमाते दीपक जल रहे हैं।

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

दीपक भारत दीप जी बहुत सुन्दर वक्तव्य आप के ..रचना ने बहुत कुछ मर्म कह डाला
भ्रमर ५

पर्दे पर करोड़ों के खेल चल रहे हैं,
भूखों में रोटी के सपने भी पल रहे हैं।
सौदागरों ने हड़प ली बाज़ार कि रोशनी
गरीबों के घर टिमटिमाते दीपक जल रहे हैं।

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