हिन्दी दिवस पर हम बहुत लिख चुके पर लगता है कि फिर भी कुछ छूट रहा है। आज हमारे बीस ब्लाग का समूह अनुमान के अनुसार एक दिन आठ हजार पाठक/पाठक संख्या को पार कर गया। जिस गति से यह चल रहा है नौ हजार तक पहुंचने की भी संभावना लगती है। यकीनन यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। करीब करीब सभी ब्लाग अपने पुराने कीर्तिमानों से बहुत आगे निकल रहे हैं। सच कहें तो हिन्दी के साथ कोई भी शब्द जोड़कर इंटरनेट पर मातृभाषा में पढ़ने वाले आज के लोग हमसे अधिक भाग्यशाली हैं कि उन्हें कुछ पढ़ने को मिल जाता है। हम हिन्दी ब्लाग लेखक मिलों और पाठकों से कुछ कहना चाहते हैं पर क्या? लिखते लिखते कुछ भी लिख जायेंगे। यकीन मानिए वह निरर्थक नहीं होगा। आज मौका अच्छा लगता है क्योंकि हिन्दी दिवस कोई रोज रोज थोड़े ही आता है। कल से संख्या फिर सिमटने लगेगी।
इंटरनेट खोलने पर पांच साल पहले हमें निराशा हाथ लगती थी। कुछ लिखा नहीं मिलता था। ब्लाग मिला तो लिखना इसलिये नहीं शुरु किया कि किसी को पढ़ाना है बल्कि आत्म संतुष्टि का भाव था। स्वतंत्र रूप से लिखने का भाव! यह अलग बात है कि प्रायोजित हिन्दी बाज़ार हम जैसे इंटरनेट लेखकों को प्रयोक्ता मानता है। यह हम अपने पाठकों को बता दें कि आतंकवाद को एक व्यापार मानने का सिद्धांत इसी ब्लाग समूह पर दिया गया। यह भी माना गया है कि भारत में हो या भारत से बाहर विश्व का आतंकवाद बाज़ार समूहों के धन से प्रायोजित हो सकता है जो अपनी अवैध गतिविधियों से जनता और राज्य का ध्यान बंटाने के लिये करते हैं। देश में गरीबी और भ्रष्टाचार है यह सच है! जनता में आक्रोश है यह भी छिपा हुआ नहीं है, मगर गोलियां और बम खरीदने की क्षमता हमारे आम लोगों में नहीं है। भूखे बंदूक उठायेंगे यह सिद्धांत हमेशा धोखा लगता रहा है। अब छत्तीसगढ़ में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के नक्सलियों को आर्थिक मदद देने के आरोप लगने से यह प्रमाणित हो गया है। इस पर अनेक बहसें इंटरनेट पर हुईं। जब हमने आतंकवादियों के आर्थिक स्तोत्रों के बारे में प्रश्न उठाया तो कोई जवाब नहीं दे सका। अनेक सुधि टिप्पणीकारों ने इसका समर्थन कर अनेक उदाहरण भी दिये कि किस तरह जिस क्षेत्र में आतंकवाद है वही अवैध काम भी अधिक होते है।
हम यहां स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि आप देश के जिन भी अंग्रेजी और हिन्दी के नामी लेखकों, बुद्धिजीवियों के साथ बहसकर्ताओं को टीवी या समाचार पत्रों में देखते सुनते हैं वह कहीं न कहंी इंटरनेट लेखकों की नयी धारा से प्रभावित होकर अपना नाम कर रहे हैं। वह हमारा नाम नहीं देते। गांधी जी को नोबल न मिलने का मामला हो या ओबामा को नोबल मिलने वाला मजाक या आतंकवाद को व्यापार मानने का सिद्धांत हो, इन विषयों पर इस लेखक के पाठ और विचार प्रचार माध्यमों में दिखाई दे रहे हैं। क्रिकेट को खेल की बजाय व्यापार मानने की बात अब अनेक लोग स्वीकारने लगे हैं। हम यहां साफ बता दें कि आप अगर नये विचार और नया चिंत्तन पढ़ना चाहते हैं तो इस समूह का कोई ब्लाग अपने यहां ईमेल का पता दर्ज कर मंगा लें। अन्ना हज़ारे का आंदोलन हो या बाबा रामदेव का अभियान, इन पर हमारी राय आम धारा से मेल नहीं खाती। कुछ पाठक नाराज होते हैं पर कुछ सराहते हैं। सच बात तो यह है कि हम दबी जुबान में लिखते हैं क्योंकि यहां आम पाठकों से कोई समर्थन नहीं है। अगर पाठकों से प्रोत्साहन हो तो शायद हम किसी की परवाह नहीं करें। अगर हमारे किसी ब्लाग के दस हजार पाठक प्रतिदिन हो जायें तो हम ऐसा लिखें कि देश के नामीगिरामी बाज़ार से प्रायोजित बुद्धिजीवी दांतों तले उंगलियां दबा लें। अधिक पाठक होने पर ं वह हमारे पाठ और विचार अपने नाम करने के प्रयास भी नहीं करेंगे।
दूसरी बात यह है कि आम पाठक एक बात ध्यान रखें कि इंटरनेट पर ब्लाग लिखने वाले हम जैसे स्वतंत्र लेखकों को एक भी पैसा नहीं मिलता। बल्कि साढ़े छह सौ जेब से जाते हैं। स्वयंभू लेखक और संपादक है जिसके पास इस रूप में एक पैसा भी नहीं आता। ऐसे में पाठकों को अधिक से अधिक टिप्पणियां करना चाहिए। दूसरी बात लेखक के नाम की चर्चा अवश्य दूसरी जगह करना चाहिए ताकि उनका प्रचार हो। ऐसा कर वह इंटरनेट लेखकों के ऐसे वर्ग का निर्माण वह करेंगे जो बाज़ार और प्रचार समूहों के बड़े बड़े बुद्धिजीवियों की हवा निकाल देगा। अगर हिन्दी के पाठक चाहते हैं कि इंटरनेट पर हिन्दी में मौलिक, तयशुदा विचाराधारा से प्रथक तथा स्वतंत्र लेखन से सुजज्जित सृजन हो तो उन्हें टिप्पणियों अवश्य करना चाहिए।
हिन्दी के आम पाठक शायद इस बात को मजाक समझेंगे पर यह सत्य है कि जिन लोगों का बौद्धिक व्यवसाय संगठित प्रचार माध्यमों पर-टीवी, समाचार पत्र, फिल्म तथा साहित्य प्रकाशन-आधारित है वह इस इंटरनेट से प्रभावित होकर सृजन कर रहे हैं। वह यहां के लेखकों का नाम नहीं देते तो केवल इसलिये कि उनको पता है कि देश में बहुत कम आम पाठक इस बात को जानेंगे कि हमने अपना नवीनतम विचार कहां से लिया है? अगर पाठक यहां इंटरनेट लेखकों से संवाद बनायेंगे तो उनको अनेक महत्वपूर्ण रचनायें पढ़ने को मिल सकती हैं। पाठकों की अधिक सक्रियता यहां के लेखकों की कवितायें और कहानियों की चोरी रोकने में सहायक होगी। आम पाठक को यह बात याद रखना चाहिए कि यहां के लेखक भी उनकी तरह आम हैं। उनकी रोजी रोटी का आधार भी आम आदमी की तरह है पर यहां लेखन केवल स्वांत सुखाय है। इस सुख में उनको भागीदार बनना है। यह टिप्पणी कर प्राप्त किया जा सकता है।
हिन्दी दिवस पर पता नहीं क्या लिखना था क्या लिख गये? मगर जो लिखा डूबकर लिखा। इंटरनेट पर लिखने का अपना एक अलग मजा है और अनुभव है। इतना बड़ा लेख लिखा यह जानते हुए भी कि इसके पाठक होंगे। इससे अच्छा तो बेतुकी, और व्याकरण से पैदल कवितायें लिखना ठीक रहता जो लेखों से अधिक हिट होती हैं। लोग कहते हैं कि यह कविता नहीं है, यह गज़ल नहीं है यह गीत नहीं है पर इतना सब मानते हैं कि उसमें कथ्य जोरदार है। इंटरनेट पर हम कविता जब लिखते हैं तो मुख्य विषय कथ्य होता है। यह हैरानी की बात है कि कवितायें सुनना या पढ़ना आमजीवन में लोग पसंद नहीं करते पर कथ्य जोरदार हो तो इंटरनेट पर उनका नजरिया बदल जाता है। हमने ब्लागों का अवलोकन किया तो पाया कि अध्यात्मिक लेखों के बाद पाठकों की पसंद कवितायें ही रही हैं। बहरहाल इस हिन्दी दिवस पर इस लेख में इतना ही। इस अवसर पर पाठकों और साथी ब्लाग लेखक मित्रों को बधाई।
इस हिन्दी दिवस अवसर पर शपथ लें कि
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1.शुद्ध हिन्दी बोलेंगे। उसमें उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का मिश्रण नहंी करेंगे।
2.इंटरनेट पर हिन्दी की रचनाऐं ही ढूंढेंगे।
3.ऐसे लेखकों को हतोत्साहित करेंगे जो हिन्दी में उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का मिश्रण कर अपनी श्रेष्ठता झाड़ते हैं।
शेष फिर कभी
दीपक भारतदीप
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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