समाज सेवक का पुत्र
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से लौटकर आया,
घर में घुसते ही बाप ने उसे धमकाया
‘‘तुझे शर्म नहीं आती है,
भ्रष्टाचार विरोधियों से तुम्हारी दोस्ती
मुझे अपने दोस्तों में बदनाम कराती है,
तुझे क्या मालुम तेरे खर्च का पैसा
मेरे पास कहां से आता है,
कमाई करते हुए मेरा तेल निकल जाता है,
दो नंबर के धंधेवाले
अगर मेरे से मुंह फेर लें,
तो चंदा देने वाले
उधार वापस मांगने की बात कहकर घेर लें,
तू जो चला रहा है मोटर साइकिल,
ईंधन का काम करता है मेरे दोस्तों का दिल,
होटल में जाकर अपनी गर्लफै्रंड के साथ
जो तो मजे उड़ाता है,
उसका बिल मेरा एक दानदाता चुकाता है,
अगर चाहता है कि चलती रहे तेरी एय्याशी
मत बन मेरे चंदा देने वालों के लिये सत्यानाशी,
यह आंदोलन सफल हुआ
तो तेरा जेब खर्च बंद हो जायेगा,
फिर तेरा इश्क का भूत नजर नहीं आयेगा।’’
सुनकर पुत्र बोला
‘‘मैं क्या करूं
मेरी गर्लफ्रैंड भी वहां जाती है,
मुझे भी चलने के लिये उकसाती है,
आजकल होटल जाना
और मोटरसाइकिल पर घूमना हो गया है बंद,
इश्क में सिद्धांतों पर बहस होती है
झूमाझटकी हो गयी है बंद,
वह उपवास करती है,
मितव्ययी होने का दंभ भरती है,
मैं उसका खर्च अब नहीं उठाता,
उसके जुलूस के लिये
अपने दोस्तों की भीड़ मुफ्त में जुटाता,
आपके भ्रष्टाचार से अब मेरा मन दुःखी होगया है,
अय्याशी त्यागकर सुखी हो गया है,
साइकिल पर घूमना शुरु करूंगा,
अपना काम शुरु कर अपना हर बिल भरूंगा,
हर आदमी अपने पाप पुण्य भुगतता है,
आपके कर्मों का बिल भी आपके ही सामने आयेगा,
मैं तो वही जाऊंगा जहां मेरा दिल जायेगा।’’
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से लौटकर आया,
घर में घुसते ही बाप ने उसे धमकाया
‘‘तुझे शर्म नहीं आती है,
भ्रष्टाचार विरोधियों से तुम्हारी दोस्ती
मुझे अपने दोस्तों में बदनाम कराती है,
तुझे क्या मालुम तेरे खर्च का पैसा
मेरे पास कहां से आता है,
कमाई करते हुए मेरा तेल निकल जाता है,
दो नंबर के धंधेवाले
अगर मेरे से मुंह फेर लें,
तो चंदा देने वाले
उधार वापस मांगने की बात कहकर घेर लें,
तू जो चला रहा है मोटर साइकिल,
ईंधन का काम करता है मेरे दोस्तों का दिल,
होटल में जाकर अपनी गर्लफै्रंड के साथ
जो तो मजे उड़ाता है,
उसका बिल मेरा एक दानदाता चुकाता है,
अगर चाहता है कि चलती रहे तेरी एय्याशी
मत बन मेरे चंदा देने वालों के लिये सत्यानाशी,
यह आंदोलन सफल हुआ
तो तेरा जेब खर्च बंद हो जायेगा,
फिर तेरा इश्क का भूत नजर नहीं आयेगा।’’
सुनकर पुत्र बोला
‘‘मैं क्या करूं
मेरी गर्लफ्रैंड भी वहां जाती है,
मुझे भी चलने के लिये उकसाती है,
आजकल होटल जाना
और मोटरसाइकिल पर घूमना हो गया है बंद,
इश्क में सिद्धांतों पर बहस होती है
झूमाझटकी हो गयी है बंद,
वह उपवास करती है,
मितव्ययी होने का दंभ भरती है,
मैं उसका खर्च अब नहीं उठाता,
उसके जुलूस के लिये
अपने दोस्तों की भीड़ मुफ्त में जुटाता,
आपके भ्रष्टाचार से अब मेरा मन दुःखी होगया है,
अय्याशी त्यागकर सुखी हो गया है,
साइकिल पर घूमना शुरु करूंगा,
अपना काम शुरु कर अपना हर बिल भरूंगा,
हर आदमी अपने पाप पुण्य भुगतता है,
आपके कर्मों का बिल भी आपके ही सामने आयेगा,
मैं तो वही जाऊंगा जहां मेरा दिल जायेगा।’’
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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aaj ke sandarbh mein behtreen kavita
behtreen kavita
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