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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/23/2010

स्वाभिमान और दौलत की शान-हिन्दी कविता (svabhiman aur dualat ki shan-hindi poem)

कदम कदम पर
कांपने लगते हैं वह
अपने बुरे काम से,
फिर भी रिश्ता जोड़ लिया है स्वाभिमान से।
झूठ के पांव नहीं होते,
बेईमान हमेशा कायरता का बोझ ढोते,
देश और समाज की
इज्जत बचाने की बात अच्छी लगती है,
पर जिन पर जिम्मा है इसका
वही जिंदगी को जोड़ते केवल दौलत की शान से।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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