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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/28/2010

प्रसिद्ध लोगों का कथन कितना सार्थक-हिन्दी लेख (famous parson of hindi and hindi blog-hindi article)

इस देश में कई ऐसे महान लेखक हैं कि अगर हम स्वयं लेखक न हों तो उनका नाम नहीं जानते होते। इतना ही नहीं समाचार पत्र पत्रिकाओं में कई लेख भी न पढ़ें अगर हमारे अंदर पढ़कर लिखने का जज़्बा न हो। कहने का अभिप्राय यह है कि आम भारतीय अखबार केवल समाचारों की वजह से पढ़ता है उसमें भी स्थानीय समाचारों के छपने की अपेक्षा के साथ-अंदर के लेख तो बहुत कम लोग पढ़ते हैं। इस देश में अनेक समाचार पत्रों ने अनेक ऐसे लेखकों को महान बनाया है जो समसामयिक विषयों पर हल्का फुल्का ही लिख पाते है। इनमें से अनेक महान लोग अनेक ऐसी संस्थाओं के प्रमुख भी बन जाते हैं जो इस देश की फिल्मों, टीवी चैनलों तथा साहित्य का मार्ग दर्शन करती है और उनके कथन बड़े महत्व के साथ समाचार पत्र पत्रिकाओं, टीवी चैनलों तथा रेडियो पर उद्धृत किये जाते हैं।
ऐसे ही अनेक लेखक तथा अन्य विचारक हिन्दी ब्लाग जगत के नकारात्मक पक्षों को उभार कर यह साबित कर रहे हैं कि वहां के लेखक सामान्य स्तर के हैं-या कहें कि संपादक के पत्र लिखने तक की औकात रखते हैं। वह ब्लाग जगत के आपसी विवादों को बाहर भयानक कहकर प्रचारित कर रहे हैं क्योंकि वह स्वयं ही सीमित ब्लाग देखते हैं-वैसे ऐसे बड़े लोग स्वयं नहीं देखते होंगे जब तक चेला चपाटा कंप्यूटर खोलकर न दिखाये। हिन्दी ब्लाग जगत के बहुत कम लेखक इन लोगों की मानसिकता को जानते हैं वह भी पूरी तरह उसे उजागर करने का समय नहीं निकालते।
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतर्जाल के माध्यम से हिन्दी आधुनिक काल-इसे अब उत्तरोतर काल भी कह सकते हैं-से निकलकर वैश्विक काल में प्रवेश कर चुकी है और इसमें वह लेखक अपना अस्तित्व ढूंढ रहे हैं जो अपने लिखे से कम अपनी चालाकियों और संबंधों की वजह से प्रसिद्ध हुए हैं। कंप्यूटर पर स्वयं टंकित करना या किसी से दूसरे को मोहताज होने में वह अपनी हेठी समझते हैं-इस पर तकनीकी फंडा भी है कि उनको पहले कंप्यूटर गुरु ढूंढना होगा और उसकी जीहुजूरी करनी होगी। ऐसे शब्दों के खिलाड़ी हिन्दी ब्लाग जगत के बारे में जानना तो चाहते हैं पर इसके लिये उनको सहयोगी चाहिये और इससे उनके अंदर यह आशंका बलवती होती होगी कि वह किसी दूसरे लेखक को महत्व देते हुए दिख रहे हैं। सच बात तो यह है कि हिन्दी ब्लाग जगत एक व्यापक रूप धारण करता जा रहा है। अभी तक हिन्दी के उत्तरोतर काल के लेखक संगठित प्रचार माध्यमों-समाचार/साहित्य पत्र पत्रिकाऐं, टीवी चैनल और रेडियो के साथ व्यवसायिक प्रकाशन उद्योग-के सहारे प्रसिद्धि के शिखर पर हैं। एक तरह से वह बाजार की ताकत के सहारे हैं। वह उनको हर जगह मंच उपलब्ध कराता है और इनकी शक्ति इतनी अधिक है कि वह अपने ही चेलों को भी एक सीमा तक आगे ले आते हैं-अन्य किसी व्यक्ति का सामने आना उनको मंजूर नहीं है। हिन्दी ब्लाग जगत में भी बाजार सक्रिय होगा पर पर फिर भी असंगठित क्षेत्र के ब्लाग लेखक उनके बस में नहीं होंगे-सीधा आशय यह है कि हिन्दी ब्लाग जगत हमेशा ही संागठनिक ढांचों की पकड़ से बाहर रहेगा। ऐसे में बेहतर लिखने वाले किसी की परवाह नहीं करेंगे तब हमारे यह उत्तरोत्तर कालीन महान लेखक अपनी गुरुता किसे दिखायेंगे? यह खौफ अनेक विद्वानों में हैं और चाहे जब हिन्दी ब्लाग जगत पर कुछ भी प्रतिकूल टिप्पणी करने लगते हैं।
इनकी दूसरी मुश्किल यह भी है कि देश को कोई भी ब्लाग लेखक बिना सांगठनिक ढांचों की सहायता के अपनी बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा रहा है। ब्लाग पर लिखा अनुवाद कर दूसरी भाषाओं के लोग भी पढ़ते हैं। हिन्दी के लेखक अंग्रेजी तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में पढ़े जा रहे हैं। उनको कितने पाठक पढ़ रहे हैं यह अभी विवादों के घेरे में लगता है। कभी कभी तो लगता है कि लोग अधिक पढ़ रहे हैं पर काउंटर कम व्यूज दिखा रहा है और अधिक दिखते हैं तो यह भी शक होता है कि कहीं से फर्जी व्यूजा नहीं है। एक जगह से भेजा गया व्यूज दूसरी जगह नहंी दिखता। कहीं दिख रहा है तो वह मूल स्थान पर नहीं दिखता। महत्वपूर्ण यह है कि हिन्दी ब्लाग जगत के बेहतर पाठ निरंतर पाठक जुटा रहे हैं तो सामयिक पाठ भी।
अक्सर लोग कहते हैं कि अखबार लाखों लोग पढ़ते हैं। सच है पर कितने लोग पूरा पढ़ते हैं और कितने याद रखते हैं यह भी एक विचार का विषय है। यह ब्लाग तो चलते फिरते अखबार और किताबें हैं और इससे कम लोग पढ़ते हैं यह सच है पर आगे भी पढ़ जाते रहेंगे न कि किसी अल्मारी में बंद होंगे। हिन्दी ब्लाग जगत में जो नये लेखक हैं उनको यह गलतफहमी नहीं रखना चाहिये कि अधिक स्तर पर छपना ही बड़े लेखक होने का प्रमाण है। वह इन बड़े लेखकों के नाम सुनते होंगे पर इनकी कोई रचना उनकी स्मृति में नहीं होगी। एक भाषाविद् की तरह अपने शब्दों में अधिक से अधिक कठिन शब्द लिखना या लंबे वाक्य घुमा फिराकर कहने से कोई बड़ा लेखक नहीं हो जाता। एक ही घटना पर साल भर लिखना से विद्वता प्रमाणित नहीं होती। यहां तक कि उपन्यास लिखने से भी कोई महान नहीं हो जाता। अगर आपकी कोई एक रचना भी बेहतर निकल आये तो वह आपकी याद सदियों तक रख सकती है-‘उसने कहा था’ कहानी की तरह जो गुलेरी साहब ने लिखी थी। आधुनिक हिन्दी के महान साहित्यकार प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, सुभद्र कुमारी चैहान और सूर्यकांत त्रिपाठी जैसे महान लेखक अब यहां नहीं होते क्योंकि लोग थोड़ा लिखकर सुविधाओं की पीछे भागते हैं-इसी प्रयास में ही वह लिखना भी शुरु करते हैं और उनके शब्द बहुत गहराई तक छूते नहीं लगते।
हमने यह तो सुना है कि अच्छा पढ़े बिना अच्छा नहीं लिख सकते। साथ ही यह भी चालीस लाईनें पढ़ेंगे तब एक लाईन लिख पायेंगे। अंतर्जाल पर आकर इस बात की सच्चाई भी देख ली। अनेक बड़े लेखकों ने ब्लाग बनाये हैं पर उनका लिखा देखकर यही लगता है कि वह पढ़ते बिल्कुल नहीं हैं। छात्र जीवन के बाद उन्होंने शायद ही पढ़ने को अधिक महत्व दिया है। उनका लेखन सतही लगता है।
एक जगह पर हम दो दिन रुके थे वहां अंतर्जाल की सुविधा एक बालिका उपयेाग करती थी। वह अंतर्जाल पर सौंदर्य सामग्री से संबंधित विषय अंग्रेजी में पढ़ रही थी। उसने अंतर्जाल पर हिन्दी के न होने की बात कही तो हमने अपना लेखकीय परिचय न देते हुए उसे ब्लागवाणी तथा चिट्ठाजगत का पता दिया इस जानकारी के साथ कि वहां हिन्दी के ढेर सारे ब्लाग पढ़ने को मिलते हैं। हमने उसे अपने ब्लाग का परिचय इसलिये नहीं दिया क्योंकि उनके कुछ हास्य कवितायें थी जिन पर उपहास बन सकता था।
अगले दिन फिर उसके घर जाना हुआ। वह चिट्ठाजगत खोले बैठी थी और उसने मस्ती कालम के द्वारा हमारा ब्लाग पकड़ लिया था। इसी लेखक का ब्लाग दिखाते हुए कहा-‘इस कविता से मेरी चिढ़ छूट रही है।’
हमने वह कविता देखी तो कह दिया कि ‘यह तो बेकार लेखक लग रहा है।’
वह लड़की प्रतिवाद करते हुए दूसरी कविता दिखाते बोली-‘नहीं, इसकी यह कविता बहुत अच्छी है।’
उसने तीन कविताओं को ठीक और दो को बहुत अच्छा और एक को चिढ़ाने वाली बताया। सबसे बड़ी बात तो यह कि उसने एक अन्य ब्लाग लेखक के लेख तारीफ की‘इसका यह दो लेख बहुत अच्छे हैे। तीसरा यह ठीक लगता है।’
हमने दोनों लेखकों की तुलना पूछी तो उसका जवाब था कि ‘दोनों अलग अलग तरह के हैं पर ठीक लिखते हैं। दूसरे लोग भी ठीक लगे पर इन दोनों को ज्यादा पढ़ा। दूसरे लोग के भी ब्लाग देखे पर उनमें कुछ ही ठीक हैं और बाकी का तो समझ में नहीं आया।’
उसने जिस दूसरे ब्लागर की खुलकर तारीफ की उसका नाम लिखेंगे तो लोग कहेंगे कि चमचागिरी कर रहा है पर उस ब्लागर का मत भी वही है कि अधिक पढ़ो तभी लिख पाओगे। वह ब्लाग जगत में बहुत लोकप्रिय है और यकीनन उसका स्तर अनेक मशहूर लेखकों से अच्छा है। वह ब्लागर भी सांगठनिक ढांचे के प्रकाशनों से त्रस्त रहा है और यह ठीक है कि उसे बहुत लोग नहीं पढ़ते होंगे पर वह इस हिन्दी ब्लाग जगत को ऐसी रचनायें देगा जो अविस्मरणीय होंगी। उस बालिका के मुख से उस ब्लागर की प्रशंसा ने हमारे इस मत को पुष्ट किया कि बड़े लेखक भले ही मशहुर हैं पर पढ़ते नहीं है और इसलिये उनके चिंतन सतही हो जाते हैं जबकि स्वतंत्र और मौलिक ब्लागर जो सब तरफ पढ़कर और फिर अपने चिंतन के साथ यहां पाठ-कहानियां, व्यंग्य, आलेख और कवितायें रखेगा उसके सामने बड़े बड़े लेखक पानी भरते नज़र आयेंगे। अंतर्जाल पर वैश्विक काल की हिन्दी अनेक बेजोड़ लेखक ला सकती है जो गागर में सागर भरेंगे।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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