आँखों से देखे का अहसास
कौन कराता है.
कानों से सुने का
अर्थ कौन समझाता है.
हाथों से छुए का स्पर्श कौन दिखाता है.
मुहँ के पकवान का
स्वाद कौन उठाता है.
अरे, उस अंतर्मन को तुम नहीं जानते
इसलिए भटकते हुए
जिंदगी की राह चले जा रहे हो
अपनी अंहकार की अग्नि में जले जा रहे हो
बोलता नहीं है वह
पर होकर मौन तुम्हें रास्ता दिखाता है.
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 टिप्पणी:
sundar racanaa hai.
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